Tuesday, September 17, 2013

लहलहाती बेरोजगारी के मरुद्यानों में अब नहीं बाजार का भविष्य कोई सौदागरों के निशाने पर हैं जल जंगल जमीन बहुमंजिला बाजार बनेगा गांव अब अच्छा है सोनी सोरी सिर्फ तुमने ही सहे अपनी योनि में शीशे पत्थर देश की योनि बची रही Seven levers marketers are pulling to beat slowdown

लहलहाती बेरोजगारी के मरुद्यानों में

अब नहीं बाजार का भविष्य कोई

सौदागरों के निशाने पर हैं जल जंगल जमीन

बहुमंजिला बाजार बनेगा गांव अब

अच्छा है सोनी सोरी

सिर्फ तुमने ही सहे

अपनी योनि में शीशे पत्थर

देश की योनि बची रही

Seven levers marketers are pulling to beat slowdown


पलाश विश्वास






लहलहाती बेरोजगारी के मरुद्यानों में

अब नहीं बाजार का भविष्य कोई

सौदागरों के निशाने पर हैं जल जंगल जमीन

बहुमंजिला बाजार बनेगा गांव अब

आपका हमारा घर बनेगा अब

अमेरिका या फिर इजराइल


अच्छा है सोनी सोरी

सिर्फ तुमने ही सहे

अपनी योनि में शीशे पत्थर

देश की योनि बची रही


यकीनन सर्वेश्वर का कहना सही है

सौ फीसद, आज उनका जन्मदिन भी


मौज मनाओ दोस्तों

नब्वे के दशक में उदारीकरण शैशव में

भारत ने दी एक के बाद एक विश्व सुन्दरियां

ओबामा प्रशासन में छाया है संघ परिवार

नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व से बहुत पहले से

अब लीजिये नमो जन्मदिन पर नायाब तोहफा

मिस अमेरिका भी अब भारतीय हैं


अमेरिकी वीसा को बेमतलब रोते हैं

अब असली अमेरिका भारत है


यकीनन सर्वेश्वर का कहना सही है

सौ फीसद, आज उनका जन्मदिन भी


देश कागज पर बना नक्शा नहीं होता....

लोग हैं कि इस पृथ्वी से मिटा रहे हैं मेरा देश

और कागज पर बना रहे हैं डालर देश अजब


निरंकुश माफिया राज में मौत की घाटियों

के अनंत वधस्थल बन गया है भारत


घर में चीजें हैं बेशुमार,आनलाइन शापिंग

और होमडेलीवरी है,डायरेक्ट मार्केटिंग का समां है

चेन का महाभारत है चिटफंड इकानामी में


लेकिन बच्चे अब होम एलोन हैं और खुशी मायके में

घर है सर्वत्र,घर में हम किरायेदार

जितने लोग बसते हैं उस घर में

सबके सब अजनबी हैं घर में

समाज तो पहले ही खत्म है

परिवार भी कहीं नहीं है


समाज भी अब हुआ बाजार है

बाजार हुआ परिवार है

परिवार में बसने के लिए

बाजार की तर्ज पर क्रयशक्ति अनिवार्य है

मां बाप अब वृद्धाश्रम है


घर के भीतर चहारदीवारी है

घर ऐसा न फर्श है न अर्श कोई

न आसमान कोई और न जमीन कोई

न खिड़कियां हैं कहीं

न कहीं दरवाजे हैं

घर के भीतर होकर भी हम घरबाहर हैं


दांपत्य अब कोई संबंध नहीं है

शारीरिक जरुरत है

व्यायाम है या योगाभ्यास

या फिर बिग बास का घर है

एक तरफ स्वर्ग है

तो दूसरी तरफ नर्क है

तदर्थ व्यवस्था है

अस्थाई लिव इन है


बच्चे भी बच्चे नहीं हैं इन दिनों

परिवार नियोजन हैं बच्चे

दुर्घटनावश अवतरित है बच्चे

जिन्हें अब कोई नहीं चाहता

परिवार और समाज के बोझ हैं बच्चे

जिनकी फिक्र नहीं किसी को

न परिवार को न राष्ट्र को

नाबालिग को बलात्कारी बना रहे हम

बाजार में कहीं नहीं हो सकते बच्चे


कहीं कोई संस्था बची नहीं है

संस्थागत हैं सिर्फ विदेशी निवेशक

हालात इतने गड़बड़ हैं

हमारे लोग इतने कनज्युमर हैं कि

परिवार बन गया यौन उत्पीड़न केंद्र


समर्पित मिशनरी जो लोग कुंवारे थे

सबके सब आशाराम बापू हैं

जिनके खिलाफ आरोप बहुत हैं

लेकिन भक्तजनों की आस्था अडिग है

बलात्कारियों के पक्ष में

सत्याग्रह का समय है यह


पिता या पिता समान लोग

धर्म और आंदोलन के मसीहा भी

पुरखों और विरासत का जाप कर रहे लोग भी

फंडिग से देश को आजाद कर रहे लोग भी

बहनों बेटियों और माताओं के

हो गये हैं बेडपार्टनर


संसाधन जोड़ लिये सारे

करोड़ों बटोर लिये मारे मारे

हर शहर से थैलियां बटोर ली

कारपोरेट पार्टी भी बटोर ली

रंग बिरंगे झंडे का साथ भी नहीं छोड़ा


फंडिंग अनिवार्य नारे के साथ

गांव गांव शहर शहर

चेन चिटफंड जोड़ा


अब परिवार भी बसा लिया है

वृद्ध कुंआरे विवाहित बापू सारे


ये देश को आजाद करने चले थे

मनुस्मृति राज को खत्म करने चले थे

क्रांति लाने चले थे

भारत को बौद्धमय बनाने चले थे


एक शब्द भी नहीं जुबान पर

न जल जंगल जमीन से

बेदखली के सिलसिले के खिलाफ


न निजीकरण विनिवेश के खिलाफ

न प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश के खिलाफ

न परमाणु ऊर्जा के खिलाफ


न जनता के खिलाफ हुई युद्ध घोषणा के खिलाफ

न डूब में सामिल बड़े बांधों के खिलाफ

न सशस्त्र सैन्यबल विशेषाधिकार कानून के खिलाफ


बस्तियों में जाते नहीं ये मसीहा कहीं

कालोनियों में जाते नहीं ये मसीहा कहीं

जंगल कभी देखा नहीं

आदिवासी गांव नहीं देखा

बाल्मीकि बस्तियों में भी

जाते नहीं मसीहा


इन मसीहाओं ने कहीं

हिमालय के जख्मों को चीन्हा नहीं

कश्मीर के दर्द को जाना नहीं


सोना सोरी के उत्पीड़न

अब तक कुछ बोला नहीं


इरोम शर्मिला के नाम

इरोम शर्मिला के धाम

कुछ नहीं जानते मसीहा


न अर्थशास्त्र बूझते हैं

न राजनीति समझते हैं

अखबारों चैनलों की

जुगाली से रात दिन प्रवचन


अपने अपने ईश्वरों का नाम

स्मरण रात दिन

चिल्लाते जाते मसीहा

अपने को ईश्वरपुत्र बताते मसीहा


मूलनिवासियों बहुजनों को

निनानब्वे फीसद को

लूटते जाते मसीहा

चूतिया बनाते

अपना ही स्वयंवर रचते मसीहा

और हम भी बारातियों में शामिल


जनसंपत्ति जो जोड़ ली

जो खड़ी की इमारतें

जो बना लिये ट्रस्टों

जो हैं अकूत बेहिसाब संपत्ति

उसका हिसाब मांगे कौन

अपने घरों से बेदखल हम

मसीहा को बेदखल करें कौन



इन्हीं की अगुवाई में

घर बचाने चले थे हम

इन्हीं की अगुवाई में परिवार बचाने चले थे हम

इन्हीं की अगुवाई में सिंधु घाटी और हड़प्पा के

वंशजों के लिए न्याय मांग रहे थे हम


इन्हींकी अगुवाई में बंदरगाह बचायेंगे हम

इन्हीं की अगुवाई में

जाति वर्चस्व तोड़ेंगे हम

जो बाजार के प्रधानमंत्रित्व के लिए

राजधानी में यज्ञ कराते हैं

तमाम फासिस्टों के साथ मंच शेयर करके

उन्हींके पैसे से दिल्ली में मजमा लगाते हैं

अस्मिता और पहचान के नाम पर हमें लड़ाते हैं


शैतानी महासत्यानाश गलियारे के किनारे

किले हैं ऐसे मसीहा के

उस किले पर सारे के सारे कारपोरेट पहरेदार


अंध भक्तों, नाम मत उसका लेना

योजनाबद्ध लूट ही जिसका फसाना

उसके मोहजाल से निकल आओ भइया

समझ सको तो समझ जाओ भइया


शर्म इतनी जबर्दस्त है

साफ साफ किस्सा बता भी नहीं सकते

इसारा इशारा समज जाओ भइया


अभी तो कुछ भी नहीं हुआ

अंजाम इससे भी बुरा होना है भइया

सिंहद्वार पर दस्तक बहुत तेज है

ब्रह्मचारियों का लंगोट खुल गया भइया

जाग सको तो जाग जाओ भइया


देशभर में प्रवचन प्रबोधन करने वाले

जादू की छड़ी घुमाने वाले

चमत्कारों से अंध भक्त जमात बनाने वाले

मां बहन बेटी के नाम

गालियों को अब बनाने लगे हैं प्रांसगिक

तमाम पवित्र संबंध होने लगे हैं अप्रसंगिक

साझा घर ,साझा चुल्हा अब कहीं नहीं कोई


घर के अंदर भी चहारदीवारी

और घर के बाहर भी चहारदीवारी

सन सेक्स के फ्रीसेक्स में

सारे के सारे सनलाइट


लक्स की फेन में तब्दील यह समाज है अब

देश को अमेरिका बनाने में कोई कसर नहीं

छोड़ रहे हैं हम अब


घर भी अमेरिका अब

परिवार भी अमेरिका अब

समाज भी अमेरिका अब

देश भी अमेरिका अब


जो जिसके साथ सोना चाहे

उसके साथ सो जाओ अब

हाट सेक्, सबसे बड़ी सेलिब्रेटी है अब


हालत तो यह है कि

महंगाई बाप रे बाप,प्याज पछाड़े पेट्रोल को

किराने की दुकान में आग लगी है तो सब्जी मंडी में

कोई अग्निशमन यंत्र नहीं है,बाजार निरंकुश है


पूंजी पर नियंत्रण से शेयर बाजार में घमासान

विदेशी पूंजी रूठने लगे,संस्थागत निवेशक भाग जाये

रेटिंग संस्थाएं विकास दरें गिराते रहे और

सारे आंकड़े सरकार के खिलाफ हो जाये


यहां तक कि वित्त मंत्री बोले

महामहिम राष्ट्रपति  के विरुद्ध भी

विधि और परंपरा तोड़कर राष्ट्रपति भी

वणिकसभा से कर दें पलटवार


राजस्व घाटा वाणिज्य घाटा हो जाये एकाकार

देश का सोना गिरवी रखने का हो उपक्रम

ऐसा हो जाये भुगतान असंतुलन


और चालू खाते का वजूद ही खतरे में

इसीलिए पूंजी पर कोई नियंत्रण नहीं


अनियंत्रित माफिया राज,निरंकुश प्रोमोटर राज

हर कीमत पर पूंजी प्रवाह रहे अबाध

इसीलिए बाजार पर न नियंत्रण ,न निगरानी


जरुरी चीजें हों या जरुरी सेवाएं,सबकुछ विनियंत्रित

क्रयशक्ति आधारित क्रयविक्रयकेंद्र पूरा देश

जो खरीद सकें घर भर लें फटाफट


जो दाने दाने को हो मोहताज,चित हो जाये

मर जाये य़ा आत्महत्या कर लें या

फिर करें जो चाहे अपराध,अपराध भी अनियंत्रित


बल्कि संस्थागत हैं अपराध और सच तो यही है कि

संस्थागत युद्धअपराध मानवता के विरुद्ध अब

लोकगणराज्य का पर्याय है,लोकतंत्र और संविधान

से भी ऊपर है संस्थागत युद्धअपराध


जो संयोग से

धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद भी है निरंकुश

डियोड्रेंट की तरह मह मह महकता


इस देश में अब कहीं नहीं है माटी की सुगंध

न माटी है और न गोबर है कहीं,जो हैं पेइंट हैं

या सौंदर्यउपकरण हैं या यौनशक्ति वर्द्धक


फिर भी लिंगभेद निरपेक्ष देश यह नपुंसक है

एक अंधी प्रतिस्पर्धा है बाजार में सबसे ज्यादा

बोली पर नीलाम हो जाने की और हर नागरिक

अब नीलामी पर चढ़ा आईपीएल खिलाड़ी है


चियरिनों का नंगा जलवा सांस्कृतिक उत्सव है

और लोक महोत्सव भी है इन दिनों


कृपया अब नौकरी के लिए कहीं आवेदन करें

आवेदन निवेदन से अब नौकरियां नहीं मिलेंगी

रोजगार दफ्तर में पंजीकरण भी बेकार


कृपया पोस्टल आर्डर और आनलाइन चालान

भरकर नौकरियों की आस में आत्मदाह न करें अब


कुछ सौ अस्थाई पदों के लिए लाकों के हुजुम में

अनियंत्रित भगदड़ में बेमौत मौत को न्यौते नहीं


कृपया परीक्षाकेंद्र तक पहुंचने के लिए गिरे नही कहीं

ट्रेनों की छत पर सवार न हो और न ट्रेन से कटें कहीं


कैंपस से बाहर कोई नौकरी नहीं देने वाला याद रखें

कैंपस से बाहर तो रोजगार से भी बाहर,याद रखें


जितनी जल्दी हो सकें,हो जाओ आत्मनिर्भर

स्वरोजगार और काम धंधे खुद जुटा लें तो बेहतर


रोजगार देना सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं

आरक्षण के पक्ष में या आरक्षण के विरोध में

सारी मारामारी और सारा आंदोलन बेमतलब है भइया


कहीं नहीं है,कहीं नहीं है नौकरी सरकारी भइया

जो थीं,खत्म कर दी गयी हमेशा के लिए क्योंकि

सरकार भी अब एफडीआई है,निजी कंपनी है सरकार


ठेके पर काम ले रही है सरकार और जे बचे खुचे पद हैं

वे खैरात में बांटे जाने वाले हैं,राजनीतिक उपद्रव के बाद

पीड़ितों को बहकाने के लालीपाप हैं वे नौकरियां


स्थानीय रोजगार और नैसर्गिक रोजगार की हत्या के बाद

मातृभाषा और बोलियों के बहिस्कार और हत्या के बाद

विशुद्ध अंग्रेजी में विशुद्ध तकनीकी दक्ष रोजगार की

पात्रता के लिए उपयुक्त ग्रुमिंग के लिए भी बाजार


कोचिंग का बाजार अनियंत्रित,डिग्री का बाजार अनियंत्रित

अनियंत्रित है डिप्लोमा का बाजार

और व्यवसाय़िक प्रशिक्षण भी बाजार


नगर महानगर और कस्बे अब बेरोजगारी के अंधकूप हैं

स्वेच्छा अवसर के बाद जवानी में ही रिटायर लोगों का हुजुम


बिना वेतन,बिना प्रोन्नति,बिना कार्यस्थल यौन उत्पीड़न

यौन शोषण और श्रम कानूनों का बेशर्म उल्लंघन सर्वत्र


क्रयशक्ति क्षीण से क्षीण होती जा रही है और सफेदपोश

भद्रजन एअर इंडिया हैं आजकल या किंग फिशर


रेलवे में भी आनलाइन बुकिंग हैं,ठेके पर निर्माण है

ठेके पर कैटेरिंग है,डाकघर भी ठेके पर हैं इनदिनों


बंदरगाह सारे लाइन पर हैं,एक मुश्त बेच दिये जायेंगे

बैंके के कर्मचारी बहुत मजे में हैं इन दिनों और तैयारी है

कि राष्ट्रीयकऱण का फंडा पोड़ दिया जायेगा बहुत जल्दी


जैसे मीडिया हुआ है कारपोरेट नब्वे दशक के बाद

किसी को पता ही नहीं चला,वैसे ही सारे के सारे


सरकारी बैंक बेच दिये जायेंगे,वैसे भी स्टेट बैंक है

निशाने पर सबसे ऊपर ओएनजीसी और एलआईसी के बाद


सारे बीमा एजंट हो चुके हैं बेरोजगार,दलाली और कमीशन

मार्केटिंग और तकनीक के सिवाय जाब मार्केट सूना है

प्राथमिक स्कूल से लेकर विश्व विद्यालय तक निजी अब


शहरों में इसीलिए बाजार का कोई भविष्य नहीं है,समझो

हरित क्रांति बाजार का सबस बहला फंडा है,इसे भी समझो


सामाजिक योजनाओं का सत्ता समीकरण बताता है मीडिया

बाजार का समीकरण कभी नहीं बताता मीडिया,क्योंकि

इंदिराम्मा के चरण चिह्नों पर चलकर गरीबी हटाने का

यह जो फंडा है,वह भी विशुद्ध बाजार का अंडा है, समझो


चूजे जब निकलेंगे बाहर मुर्ग नहीं शुतुरमुर्ग निकलेंगे

देहात को बाजार के लिए पेश करने का उपक्रम है,समझो


नागरिकता कानून संशोधन और आधार कार्ड योजना समझो

देहात में नकदी बढ़ाने का उपक्रम है सोशल सेक्टर समझो

ट्रिकलिंग इकानामी नहीं है यह कोई गिलोटिन है समझो


बाजार का लक्ष्य है ग्रामीण भारत और इसीलिए फिल्में सारी

इसीलिए धर्म कर्म और धर्मोन्माद,अभूतपूर्व आत्मघाती हिंसा

इसीलिए पंचायती राज का यह फंडा,तमाम योजनाओं समझो


सारा का सारा इंतजाम जल जंगल जमीन से बेदखली का समझो

शहर में रोजगार नहीं,शहर में पैसे भी नहीं,जो सत्तावर्ग है

उसे ही मुनाफा कमाना है समझो,उसीके फायदे के लिए बाजार समझो


गांवों के वध का एजंडा है सबसे उपर,इसे कायदे से समझो

इसी लिए सेज का नाम बदलकर शैतानी महासत्यानाश गलियारा

इसीलिये भारत अमेरिका परमाणु संधि भइया,इसे भी समझो


इसीलिए भोपाल की गैस त्रासदी,काटनाशक से तबाह भारत समझो

विदेशी खाद,विदेशी बीज,विदेशी कीटनाशक,विदेशी तकनीक

सबकुछ गांवों में कत्लेआम के लिए समझो

किसानों की हत्या आत्महत्या के लिए समझो


सारे के सारे परमाणु संयंत्र गावों को तबाह करने के लिए

सारे मार्ग,स्वर्णिम राजपथ गांवों को कुचलने के लिए,समझो


प्रकृतिक संसाधनों के विरुद्ध खुला कारपोरेट आक्रमम समझो

न नियमागिरि और न दंडकारण्य सिर्फ निशाने पर समझो


निशाने पर हैं सिंधु घाटी और हड़प्पा की सभ्यता भी समझो

कोलकाता दिल्ली मुंबई चेन्नै,बेगलूर,हैदराबाद सबके सब खारिज

दीदी ने यूंही तुगलकी फरमान से राजधानी नहीं बदला है समझो


महानगरों के स्थानांतरण का खेल शुरु हुआ है देश में समझो

अब राजारहाट,नवी मुंबई पनवेल,नोएडा, द्वारका,गुड़गांव ही नहीं होंगे कत्लगाह भारत में,हर गांव अब भट्टा परसौल इसको भी समझो


कोयंबटूर बसेगा भारत के कोने कोने में अब, दिल्ली और मुंबई बीच

बसेंगे चौबीस महानगर नये, समझो।ईस्टर्न कारीडोर पर चालीस स्टेशन नये होंगे मतलब कि चालीस नये शहर बसाये जाएंगे समझो


केदारनाथ भी होगा भविष्य का महानगर कोई समझो

सागरद्वीप में बसेगा नया बंदरगाह,इसे भी समझो


हिमालय हो या सुंदरवन या समुंदर,अंधाधुंध शहरीकरण सुनामी से

अब बचेगा नहीं भारत को देहात कोई,गांव कोई जल्दी से समझो

बाजार ने मंदी के बहाने दबाये हैं सातों लीवर शहरीकरण के समझो


अर्थव्यवस्था में नरमी का दौर खत्म होगा: प्रणब मुखर्जी

Tag:  अर्थव्यवस्था में गिरावट, भारतीय अर्थव्यवस्था, राष्ट्रपति, प्रणब मुखर्जी, 12वीं योजना

Last Updated: Tuesday, September 17, 2013, 21:51  

नई दिल्ली : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज उम्मीद जताई कि अर्थव्यवस्था में नरमी का दौर खत्म होगा, लेकिन 12वीं योजना में 9 प्रतिशत की वृद्धि के लक्ष्य को विशेषकर शिक्षा जैसे विभिन्न सहायक कारकों के जरिए ही हासिल किया जा सकेगा।


उन्होंने कहा कि भारत अभियांत्रिकी के क्षेत्र में बुनियादी सामर्थ्य रखता है और इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार एवं विस्तार के अलावा कई कदम उठाए गए हैं। मुखर्जी यहां प्रथम इंजीनियर्स कानक्लेव, 2013 का उद्घाटन कर रहे थे। मुखर्जी ने कहा, प्रति व्यक्ति आय में सतत वृद्धि, मध्यम वर्गीय उपभोक्ताओं की बढ़ती संख्या और युवा व उर्जावान कार्यबल की वजह से देश की आर्थिक वृद्धि में तेजी लाने की अतर्निहित शक्ति मौजूद है। निश्चित रूप से सभी सम्बद्ध पक्ष और अधिक प्रयास करें तो वृद्धि के रझान को और तेज किया जा सकता है। आर्थिक नरमी के संदर्भ में राष्ट्रपति ने कहा, यद्यपि हाल के समय में भारत की आर्थिक वृद्धि दर में गिरावट आई है, मुझे भरोसा है कि हम इस गिरावट पर लगाम लगाने में समर्थ होंगे और इसे उंची वृद्धि दर में तब्दील करेंगे।


पूर्व में वित्त मंत्री रह चुके मुखर्जी ने कहा कि 12वीं पंचवर्षीय योजना में 9 प्रतिशत की वृद्धि दर का लक्ष्य रखा गया है, इसके लिए कई अनुकूल कारकों की जरूरत है जिसमें शिक्षा एक क्षेत्र है। वृद्धि दर में तेजी लाने के लिए नवप्रवर्तन एक प्रमुख प्रबंधकीय रणनीति है।


राष्ट्रपति ने कहा कि नवप्रवर्तन के विभिन्न आयामों जैसे प्रक्रिया नवप्रवर्तन, उत्पाद नवप्रवर्तन, कारोबारी माडल नवप्रवर्तन एवं नयी प्रौद्योगिकी नवप्रवर्तन पर जोर दिए जाने की आवश्यकता है। मशीन टूल्स की डिजाइनिंग व विनिर्माण में मजबूत क्षमता को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि उद्योग को इस आकांक्षा को आगे बढ़ाने के लिए विश्वविद्यालयों व अनुसंधान संस्थानों के साथ मजबूत साझीदारी विकसित करनी होगी।


मुखर्जी ने भारत में कुल रोजगार में विनिर्माण क्षेत्र के योगदान को रेखांकित करते हुए कहा देश में कुल रोजगार में विनिर्माण क्षेत्र का करीब 11 प्रतिशत योगदान है जो कई उभरते देशों की तुलना में कम है। उभरते देशों में कुल रोजगार में विनिर्माण क्षेत्र का योगदान 15 से 30 प्रतिशत तक है।


उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय विनिर्माण नीति, 2011 के तहत 2025 तक विनिर्माण क्षेत्र में 10 करोड़ अतिरिक्त रोजगार सृजन का लक्ष्य रखा गया है और 2022 तक जीडीपी में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़कर 25 प्रतिशत पर पहुंच जाएगी। (एजेंसी)

First Published: Tuesday, September 17, 2013, 21:51


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दैनिक जागरण

राजस्थान के एक और मंत्री यौन शोषण में फंसे

दैनिक जागरण

- ‎53 मिनट पहले‎







जयपुर [जागरण संवाददाता]। राजस्थान सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे महिपाल मदेरणा और कांग्रेस विधायक मलखान विश्नोई के बाद अब खादी और डेयरी मंत्री बाबूलाल नागर भी यौन शोषण के एक मामले में फंस गए हैं। जयपुर की एक युवती ने नागर पर नौकरी दिलाने का झांसा देकर दुष्कर्म करने का आरोप लगाया है। शिकायत पर अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने पुलिस को जांच के आदेश दिए। राज्य सरकार ने मामले की जांच सीआइडी को सौंप दी। पढ़ें: कांडा पर अप्राकृतिक संबंध बनाने के आरोप तय. पीडि़ता ने 13 सितंबर को अदालत में इस्तगासा दायर कर बताया कि मंत्री ने नौकरी लगाने की कहकर उसे अपने घर बुलाया।



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लड़की को बीमार बताने वाले जेठमलानी की ट्विटर पर खिंचाई

नवभारत टाइम्स

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नई दिल्ली।। नाबालिग लड़की के यौन शोषण के आरोप में जेल में बंद आसाराम की पैरवी कर रहे सीनियर वकील राम जेठमलानी के द्वारा कोर्ट में दी गई एक दलील के बाद सोशल नेटवर्किंग साइट ट्विटर पर उनकी जम कर आलोचना हो रही है। जेठमलानी ने आसाराम की जमानत के लिए दलील देते हुए कोर्ट में कहा था कि पीड़ित लड़की ऐसी 'गंभीर बीमारी' से ग्रसित है, जो एक महिला को मर्द की तरफ खींच लाती है। उनके इसी बयान पर लोगों का गुस्सा फूट पड़ा है और ट्विटर पर जेठमलानी को निशाना बना कर किए जा रहे ट्वीट्स की बाढ़ सी आ गई है। मशहूर लेखिका तस्लीमा नसरीन ने ट्वीट किया, 'लड़की को 'बीमारी' है जो उसे मर्दों के ...



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मोदी 1 घंटा बोले और बहुत कुछ कहा, राहुल 15 मिनट बोले फिर भी कुछ नहीं कहाः बीजेपी

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- ‎1 घंटा पहले‎







कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने मंगलवार को राजस्थान में चुनावी हुंकार भरी तो बीजेपी ने कहा कि राहुल सिर्फ सपनों की दुनिया में रहते हैं. 10 साल तक सत्ता में रहने के बाद आज उन्हें गरीबों की याद आई है. बीजेपी नेता बलबीर पुंज ने यहां तक कह डाला कि राहुल गांधी का भाषण उन्हें कुंभकर्ण की याद दिलाता है जो 40-45 साल पहले अपनी दादी इंदिरा गांधी के भाषण को दोहरा रहा है क्योंकि वे सपने आज तक पूरे नहीं हो सके. बीजेपी ने कहा कि मोदी की तुलना में राहुल के भाषण में कोई दम नहीं था. बीजेपी के मुताबिक मोदी ने एक घंटे तक भाषण दिया और बहुत सारी बातें कहीं. पर राहुल सिर्फ 15 मिनट ...

गहराई से:भाजपा ने गरीबी के लिए कांग्रेस को ठहराया जिम्मेदारप्रभात खबर



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संप्रग के जाने का इंतजार कर रहा पूरा देश : मोदी

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- ‎1 घंटा पहले‎







संप्रग के जाने का इंतजार कर रहा पूरा देश : मोदी गांधीनगर : भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को कहा कि संप्रग सरकार के खिलाफ 'नफरत' का घड़ा भर चुका है और आम जनता इस सरकार को सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए बेसब्री से अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने का इंतजार कर रही है। मोदी ने यहां कहा, 'वर्ष 2014 के लोकसभा (चुनाव जिस समय से मैंने राजनीति और चुनावों को समझना शुरू किया) यह पहली बार है कि आम आदमी बेसब्री से चुनाव का इंतजार कर रहा है।' वह अपने 64वें जन्मदिन पर उन्हें हाल ही में भाजपा के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने के लिए आज उनके सम्मान ...


अंटार्कटिक में तेजी से पिघल रही है पानी में डूबी बर्फ

अंटार्कटिक क्षेत्र में पिघल रही बर्फ पर की गई एक नई स्टडी से पता चला है कि यहां के कुछ हिस्सों में पिघल रही बर्फ का 90 पर्सेंट हिस्सा इसके पानी में डूबे बर्फ के टुकड़ों का है। रिसर्चरों के मुताबिक, इन बर्फ के टुकड़ों के बनने और पिघलने के कारण हर साल 2,800 स्कवायर किमी. बर्फ अंटार्कटिक की बर्फीली चादर से कम होती जा रही है। हालांकि, इस नुकसान के बहुत बड़े हिस्से की भरपाई बर्फबारी की वजह से हो जाती है, लेकिन किसी भी असंतुलन से दुनिया भर में समुद्री सतह में बदलाव हो सकता है। यह खोज नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुई है।


बाजार की नजर अब फेडरल रिजर्व और आरबीआई पर टिकी है। दोनों बैठकों का रुख अब बाजार की आगे की चाल तय करेगा।


फेडरल रिजर्व की आज से 2 दिन की बैठक शुरू हो रही है। इसमें फेड क्यूई3 में 10 अरब डॉलर की कटौती का फैसला ले सकता है। अभी फेड हर महीने क्यूई3 के जरिए 85 अरब डॉलर के बॉन्ड बाजार से खरीदता है।


इस बॉन्ड खरीद के जरिए सिस्टम में नकदी बढ़ती है और यही पैसा दुनिया के शेयर, कमोडिटी और बॉन्ड बाजारों में लगता है। अगर इसमें कटौती होती है तो इसका इसर भारतीय बाजारों पर भी पड़ना तय है। जानकार मानते हैं कि अगर कटौती 10 अरब डॉलर से ज्यादा हुई तो बाजारों में तेज गिरावट संभव है।


फेड बैठक में क्या होगा इससे संकेत लेकर ही आरबीआई 20 सितंबर को आने वाली क्रेडिट पॉलिसी की रूपरेखा तय करेगा। क्रेडिट पॉलिसी से पहले आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन वित्त मंत्री पी चिदंबरम से मिलेंगे।


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सरकार के आर्थिक आंकड़े अब सवालों के घेरे में फंसते जा रहे हैं। आईआईपी के बाद अब होलसेल महंगाई दर (डब्ल्यूपीआई) पर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) ने सवाल उठा दिए हैं।


एसबीआई के मुताबिक अगस्त में खाने पीने की महंगाई दर में 18 फीसदी से ज्यादा का उछाल दिखा है जबकि रिटेल महंगाई दर में खाने पीने की महंगाई दर घटी है। आमतौर पर सीपीआई (रिटेल) की दर डब्ल्यूपीआई खाद्य महंगाई दर से ज्यादा होती है।


इतना ही नहीं स्टेट बैंक के मुताबिक सरकारी आंकड़ों में जून से अगस्त के बीच खाने पीने की होलसेल महंगाई दर 10.25 फीसदी से बढ़कर 18.25 फीसदी पर पहुंच गई है लेकिन रिटेल महंगाई दर में खाने पीने की महंगाई दर 11.75 फीसदी से घटकर 11 फीसदी के नीचे फिसल गई है। ये कमी काफी चौंकाने वाली है।


वीडियो देखें



Britannia

बीएसई | एनएसई 17/09/13

इस साल देश पर मॉनसून काफी मेहरबान रहा है। अब तक देश भर में सामान्य से 9 फीसदी ज्यादा बारिश हुई है। मध्य भारत में सबसे ज्यादा बारिश हुई है। यहां सामान्य से 25 फीसदी ज्यादा बारिश हुई है। लिहाजा मंदी से जूझ रही इकोनॉमी में खेती-बाड़ी से उम्मीदें बढ़ गई हैं। जानकारों को भी लगता है कि मॉनसून से न सिर्फ इससे जुड़ी इंडस्ट्री को सहारा मिलेगा बल्कि देश की ग्रोथ बढ़ाने में भी मॉनसून काफी मददगार साबित होगा।


आखिर बेहतर मॉनसून इस साल क्या इंडस्ट्री के लिए खुशियों की बारिश लेकर आया है। क्या रूरल डिमांड देश को मंदी के दलदल से निकालने में कामयाब हो पाएगी। यही सब समझने के लिए सीएनबीसी आवाज़ ने शुरू की है खास सीरीज- मेहरबान मॉनसून। इसमें उन कंपनियों से बात की जाएगी जिन पर मॉनसून का सीधा असर होता है। फोकस खासतौर पर ऐसी कंपनियों पर होगा जिनका ग्रामीण इलाकों में कारोबार फैला है।


ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज बिस्कुट, ब्रेड, डेयरी प्रोडक्ट्स कैटेगरी में बड़ी कंपनी है। बिस्कुट इंडस्ट्री में कंपनी का मार्केट शेयर 30 फीसदी है और गुड-डे, मारीगोल्ड, टाइगर, ट्रीट, 50-50, न्यूट्री च्वाइस जैसे ब्रांड हैं। ब्रेड में कंपनी का मार्केट शेयर करीब 50 फीसदी है।


ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज की आय का करीब 95 फीसदी हिस्सा भारत से, सिर्फ 5 फीसदी विदेशों से आता है। कंपनी की कुल 19 सब्सिडियरियों में से 13 भारत में जबकि 6 विदेश में हैं। कोलकाता, दिल्ली, चेन्नई, मुंबई, उत्तराखंड, ओडिशा, बिहार में कंपनी के प्लांट हैं। इन प्लांट्स की कुल क्षमता 1,60,000 टन है।


ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज की आय में ग्रामीण इलाकों का हिस्सा करीब 40 फीसदी है। कंपनी का कुल डिस्ट्रिब्यूशन हर साल 7 फीसदी बढ़ाने की योजना है। वहीं ग्रामीण इलाकों में सालाना डिस्ट्रिब्यूशन 10 फीसदी बढ़ाने की योजना है।


ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज के सीओओ वरुण बेरी के मुताबिक अच्छा मॉनसून एफएमसीजी कंपनियों के लिए फायदेमंद साबित हो रहा है। अच्छे मॉनसून से ग्रामीण मांग बढ़ेगी और ब्रिटानिया के प्रोडक्ट की खपत बढ़ेगी।


कंपनी के राजस्व में शहर-गांव का करीब बराबर योगदान है। ग्रामीण इलाकों में ग्रोथ शहरों के मुकाबले 3 फीसदी अधिक है। वरुण बेरी के मुताबिक उनके कारोबार में मंदी नहीं है क्योंकि गांवों में मांग तेजी से बढ़ रही है। दूसरे सेक्टर में मंदी है लेकिन कंपनी का कारोबार स्थिर है।


वरुण बेरी के मुताबिक आने वाले दिनों में कच्चे माल की कीमत बढ़ेगी। रुपये की कमजोरी और क्रूड के महंगे होने से कच्चे माल की कीमत बढ़ी है। वहीं सरकार ने कुछ फसलों के एमएसपी भी बढ़ाए हैं। इसके चलते आने वाले महीनों में उत्पादों के दाम आर भी बढ़ेंगे।


ग्रामीण बाजारों पर कंपनी का फोकस है और ग्रामीण बाजार में डिस्ट्रिब्यूशन बढ़ा रही हैं। डेयरी सेगमेंट में ग्रोथ के अवसर ज्यादा हैं और डेयरी सेगमेंट हमारे लिए काफी महत्वपूर्ण है। डेयरी प्रोडक्ट के डिस्ट्रिब्यूशन पर कंपनी का जोर है। इस साल ग्रामीण इलाकों में ग्रोथ में 15 फीसदी बढ़त का लक्ष्य रखा है।






TaraChandra Tripathi
जिन्हें तथाकथित धर्मों, चाहे वह विश्व का कोई भी धर्म क्यों न हो, की वास्तविकता का ज्ञान नही है, वही ऐसी बातें करता है. दुनिया का हर धर्म सुविधाभोगी वर्ग के हितों की का ही पोषण करता है और आम जनता को या तो भाग्यवादी बनाने का प्रयत्न करता है या उसे स्वर्ग का सब्जबाग दिखाता है. प्रकृति के रहस्यों के अन्वेषण और ज्ञान के विकास में बाधा डालता है. तर्क करने वालों का उत्पीड़्न करता है. भारत में ही नहीं, पूरे विश्व में हजारों हजार आसारामों को जन्म देता है.

अमेरिका में भारतीय मूल की पहली मिस अमेरिका का ताज पहनने वाली नीना दावुलूरी के खिलाफ सोशल मीडिया में नस्ली प्रतिक्रियाएं हुई हैं, लेकिन 24 वर्षीय इस सुंदरी ने इसे तवज्जो नहीं देते हुए कहा है कि उन्हें इन सब चीचों से उपर उठना है.


Himanshu Kumar

14 hours ago


सोनी सोरी

तुम मुजफ्फरनगर नहीं हो

न तुम बाबरी मस्जिद थी

तुम आदिवासी हो

तुम्हारे आदि धर्म में

दंगा नहीं है

न इज्जत के लिए

न ईश्वर के घर के लिए


सोनी सोरी

तुम पर यह देश

न दंगा कर सकता है

और न ही गर्व

क्योंकि आदिवासी औरतें

न हिंदू होती हैं

और न ही मुसलमान

यहां तक कि वे

स्त्री ही नहीं होतीं

इसीलिए कोई खास-आम पार्टी

तुम्हारे लिए मोमबत्ती भी नहीं जलाती


अच्छा है सोनी सोरी

सिर्फ तुमने ही सहे

अपनी योनि में शीशे पत्थर

देश की योनि बची रही


Artist Against All Odd (AAAO) की वाल से साभार

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Himanshu Kumar

8 minutes ago near Delhi ·

  • सोनी सोरी और लिंगा कोड़ोपी की ज़मानत की अर्जी
  • सोनी सोरी और लिंगा कोड़ोपी जेल में हैं। दोनों आदिवासी हैं। सरकार ने आदिवासियों की ज़मीन छीनने के लिए आदिवासियों के गाँव जलाए। लिंगा कोड़ोपी ने जाकर गाँव का वीडियो बना लिया। डर के मारे सरकार ने लिंगा कोड़ोपी को जेल में डाल दिया।
  • लिंगा कोड़ोपी की शिक्षिका बुआ सोनी सोरी ने लिंगा कोड़ोपी की मदद करने की कोशिश करी थी। इसलिए सरकार ने सोनी सोरी को भी गिरफ्तार कर लिया।
  • थाने में पुलिस अधीक्षक ने सोनी सोरी को निवस्त्र किया और सोनी सोरी के गुप्तांगों में पत्थर डाल दिए जिससे सोनी सोरी धीरे धीरे मर जाय।
  • सरकार ने दावा किया की लिंगा कोड़ोपी और सोनी सोरी नक्सली हैं। लेकिन अदालत द्वारा सोनी सोरी को पांच मामलों में निर्दोष घोषित किया जा चुका है ।
  • लिंगा कोड़ोपी पर दो फर्जी मुकदमे थे। जिनमे से एक मामले में लिंगा कोड़ोपी को निर्दोष घोषित किया जा चूका है।
  • अब सोनी सोरी और लिंगा कोड़ोपी पर एक ही मुकदमा बाकी है। इसी एक मामले में फंसा कर सरकार ने सोनी सोरी औए लिंगा कोड़ोपी को अभी भी जेल में डाला हुआ है।
  • इस आखिरी मुकदमे में पुलिस की बनाई हुई कहानी के अनुसार "एस्सार कम्पनी का ठेकेदार नक्सलियों के लिए सोनी सोरी और लिंगा कोड़ोपी को पैसे दे रहा था तब पुलिस ने दोनों को पकड़ लिया और सोनी सोरी भाग गयी ".
  • हांलाकि बाद में तहलका पत्रिका द्वारा बनाये गए वीडियो में उसी थाने का पुलिस अधिकारी यह कहते हुए पकड़ा गया था की हाँ यह सच है कि हमने लिंगा कोड़ोपी को लिंगा कोड़ोपी के घर से उठाया था। ठेकेदार को भी ठेकेदार के घर से उठाया था और पैसा भी ठेकेदार के घर से उठाया था।
  • यह वीडियो आज भी तहलका की वेब साईट पर मौजूद है.
  • इस महीने की तेरह तारीख को दंतेवाडा सेशन कोर्ट में सोनी सोरी और लिंगा कोड़ोपी पर इस मामले में आरोप तय करने पर बहस की गयी।
  • सोनी सोरी और लिंगा कोड़ोपी की तरफ से बहस करने दिल्ली से वरिष्ठ वकील वृन्दा ग्रोवर दंतेवाडा गयी थी।
  • सरकारी वकील ने तीन बातें कहीं :
  • १- सोनी सोरी और लिंगा कोड़ोपी के पास से पक्के सबूत बरामद हुए हैं।
  • २- सोनी सोरी और लिंगा कोड़ोपी के नक्सलियों से सम्बन्ध हैं।
  • ३- यह इलाका नक्सल प्रभावित है।
  • सोनी सोरी और लिंगा कोड़ोपी की वकील वृन्दा ग्रोवर ने जवाब में कहा कि :
  • १-सोनी सोरी और लिंगा कोड़ोपी के पास से कुछ भी बरामद नहीं हुआ है। यदि पुलिस की कहानी को कुछ देर के लिए सच मान भी लें तो भी पैसा ठेकेदार बी के लाला के पास से बरामद हुआ। सोनी सोरी और लिंगा कोड़ोपी के पास से कुछ भी बरामद नहीं हुआ।
  • २- सोनी सोरी और लिंगा कोड़ोपी के नक्सलियों से कोई सम्बन्ध नहीं हैं। पुलिस ने सोनी सोरी और लिंगा कोड़ोपी के नक्सलियों से सम्बन्धों के जितने भी मामले आपकी अदालत के सामने पेश किये उन सभी मामलों में आपकी इसी अदालत ने सोनी सोरी और लिंगा कोड़ोपी को सबूतों के अभाव में ससम्मान बरी किया है। इसलियें सरकार की यह दलील कि सोनी सोरी और लिंगा कोड़ोपी के नक्सलियों से सम्बन्ध हैं बिलकुल भी सिद्ध नहीं हो पाया है।
  • ३- यदि यह इलाका नक्सल प्रभावित है भी तो उसका इस मुकदमे से कोई देना नहीं है।
  • वृन्दा ग्रोवर ने सोनी सोरी और लिंगा कोड़ोपी से जेल में मुलाक़ात की। दोनों का स्वास्थ गिरता जा रहा है। सोनी सोरी और लिंगा कोड़ोपी दोनों बहुत कमज़ोर हो चुके हैं।
  • इस बीच सोनी सोरी और लिंगा कोड़ोपी की इस मामले में ज़मानत की अर्जी सर्वोच्च न्यायालय में पेश कर दी गयी है।
  • इस मामले में लिंगा कोड़ोपी की और से ज़मानत के लिए वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण सर्वोच्च न्यायालय में पेश होंगे।
  • सोनी सोरी की और से ज़मानत के इस मामले में मानवाधिकार मामलों के वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंसाल्विस सर्वोच्च न्यायालय में पेश होंगे।
  • दन्तेवाड़ा वाणी: सोनी सोरी और लिंगा कोड़ोपी की ज़मानत की अर्जी

  • dantewadavani.blogspot.com

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Status Update

By Digamber Ashu

सर्वेश्वर के ज़न्म दिन पर उनकी मशहूर कविता- देश कागज पर बना नक्शा नहीं होता....


यदि तुम्हारे घर के

एक कमरे में आग लगी हो

तो क्या तुम

दूसरे कमरे में सो सकते हो ?

यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में

लाशें सड़ रहीं हों

तो क्या तुम

दूसरे कमरे में प्रार्थना कर सकते हो ?

यदि हां

तो मुझे तुम से

कुछ नहीं कहना है ।


देश कागज पर बना

नक्शा नहीं होता

कि एक हिस्से के फट जाने पर

बाकी हिस्से उसी तरह साबुत बने रहें

और नदियां , पर्वत,शहर,गांव

वैसे ही अपनी-अपनी जगह दिखें

अनमने रहें ।

यदि तुम यह नहीं मानते

तो मुझे तुम्हारे साथ

नहीं रहना है ।


इस दुनिया में आदमी की जान से बड़ा

कुछ भी नहीं है

न ईश्वर

न ज्ञान

न चुनाव


कागज पर लिखी कोई भी इबारत

फाड़ी जा सकती है

और जमीन की सात परतों के भीतर

गाड़ी जा सकती है।


जो विवेक

खड़ा हो लाशों को टेक

वह अंधा है

जो शासन

चल रहा हो बंदूक की नली से

हत्यारों का धंधा है

यदि तुम यह नहीं मानते

तो मुझे

अब एक क्षण भी

तुम्हें नहीं सहना है ।


याद रखो

एक बच्चे की हत्या

एक औरत की मौत

एक आदमी का

गोलियों से चिथड़ा तन

किसी शासन का ही नहीं

सम्पूर्ण राष्ट्र का है पतन ।


ऐसा खून बहकर

धरती में जज्ब नहीं होता

आकाश में फहराते झंडों को

काला करता है ।

जिस धरती पर

फौजी बूटों के निशान हों

और उन पर

लाशें गिर रही हों

वह धरती

यदि तुम्हारे खून में

आग बन कर नहीं दौड़ती

तो समझ लो

तुम बंजर हो गये हो -

तुम्हें यहां सांस लेने तक का नहीं है अधिकार

तुम्हारे लिए नहीं रहा अब यह संसार।


आखिरी बात

बिल्कुल साफ

किसी हत्यारे को

कभी मत करो माफ

चाहे हो वह तुम्हारा यार

धर्म का ठेकेदार ,

चाहे लोकतंत्र का

स्वनामधन्य पहरेदार ।

- सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

Panini Anand
आप अपने घर पर अंबानी का अल्फांज़ो खाएं तो एक कैमरा ज़रूर लगाइएगा अबकी बार. हो सके तो लाइव उसी कटोरे से पैन करके उठा दीजिएगा. प्रिंट और इलेक्ट्रानिक के पत्रकारों के लिए एक कब्र आपने खोद दी है. कई पुलिस अधिकारी सच्चाई बोलने के लिए अब कान पकड़कर बाहर होंगे और आपको बोनस मिलेगा. इतना बड़ा स्टिंग जो किया है आपने. जिससे न तो सपा, भाजपा का कोई नेता बर्खास्त होगा और न ही दंगों की राजनीति रुकेगी. मरोड़ी जाएगी सच बोलने वाले अधिकारियों की गर्दन और आपके पास उनके लिए न नौकरी है, न प्रतिरक्षा. आपके लिए दंगा प्रभावित इलाके का अधिकारी और पुलिसिए एक टिसू पेपर हैं जिससे आप पोछेंगे और फेंक देंगे. आपकी दुकान चल गई. सच बताने के तरीके तब नहीं इजात हुए जब कैमरा आया. अरे सदियों से सच बताया जाता रहा है. कैमरा सच का धंधा करा रहा है. करते रहिए धंधा. सच के नाम पर दुकान चालू आहे.

Like ·  · Share · 21 minutes ago near New Delhi, Delhi ·


Rajiv Nayan Bahuguna
मेरे पिता ---३२
--------------

सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था कि राजा के जासूसों ने खबर दी , वह यहाँ भी बदमाशी कर रहा है . टिहरी रियासत ने लाहौर के ख़ुफ़िया महकमे को सन्देश भिजवाया - हमारे यहाँ का एक खतरनाक व्यक्ति आपके इलाके में रह रहा है . पुलिस ढूंढती हुयी कालेज आई , लेकिन कालेज में लड़कों और प्रोफेसरों ने भीतर न घुसने दिया .शायद विश्व विद्यालय तब और अधिक स्वायत्त होते थे . लेकिन डायन ने रास्ता देख लिया था . कब तक बचते . एक दिन पुलिस के दो सिपाही पता करते करते कमरे तक ही आ पंहुचे . मेरे पिता पिछले दरवाज़े से भागे . उनके कम्युनिस्ट मित्रों ने , जिनमे शिमला के ट्रेड यूनियन नेता कामेश्वर पंडित प्रमुख थे , उन्हें फरार करवा दिया , और फिर भूमिगत . इससे ज़ाहिर होता है कि फरार और भूमिगत करने की विद्या में कम्युनिस्ट तब भी माहिर थे . फिर सड़क पर आ गए . आकाश का ओढना और भूमि का बिछौना . कम्युनिस्ट साथी उन्हें लायलपुर जिले में ले गए . काम की तलाश शुरू हुयी . एक फैक्ट्री में मजदूर के रूप में अर्जी दी , पर मैनेज़र ने कोई पूर्व अनुभव न होने के कारण वापस खदेड़ दिया . ज्यादा इसरार करने पर संतरी से धक्के लगवाए . बी ए फाइनल की परीक्षा देना अभी बाकी था पर जान तो बचानी थी . घर भी नहीं जा सकते थे . आखिर उनके लिए एक रेस्तरां में बर्तन साफ़ करने का काम ढूंढ लिया गया , पर एक शीर्ष कम्युनिस्ट नेता ने उलाहना दिया - अरे तुम कैसे बेवकूफ हो जो एक पढ़े - लिखे होशियार कामरेड से प्लेटें साफ़ करवाने का काम करवाना चाहते हो . आखिर एक सरदार जी पकड़ में आये जो इसी जिले के सिखान वाला गाँव में बड़े ज़मींदार थे . उन्हें अपने दो युवा पुत्रों के लिए एक ट्यूटर की ज़रुरत थी . वह अपने साथ इक्के पर बिठा कर घर ले गए ( जारी )

Vidya Bhushan Rawat
India's paid media is exposing itself daily and it look there will be many heart attacks after the election results are out in 2014. We only hope that the loudspeakers will get a good lesson. Indian media could be a perfect case study as how the crony corporate with lethal mixture of brahmanical Hindutva are trying to control India. That way elections 2014 will be historical and will determine the future polity of India. May be they will also redefine media in the form of alternative media and social medias so that the so-called 'mainstream' media is just reduced to dalali and nothing beyond. The dalals will only do their job and you can not expect public interest from them. Their public interest are not bigger than the corporate interest and that of the Hindutva lobby in India. 2014 must defeat them all.

Samta Sainik Dal
हमारे देश को आजादी तभी मिल गई समझाना चाहिए जब ग्रामीण लोग, देवता , अधर्म , जाति ओर अंधविस्वास से छुटकारा पा जायेंगे |- रामासामी पेरियार जी


आज पुरोगामी चळवळी चे नेते,समाजसुधारक, साहित्यिक, संपादक,नाटककार, वादविवादपटू, वक्ते, संयुक्त महाराष्ट्र लढ्यातील अग्रणी व झुंजार पत्रकार प्रबोधनकार केशव सीताराम ठाकरे यांची १२८वी जयंती. ..

प्रबोधनकार ठाकरे यांच्या विचाराचा त्यांच्या रक्ताच्या वारसांना आणि शिवसेनेला विसर पडला आहे पण आम्हाला त्यांच्या विचाराचा विसर पडला नाही त्यांचा विचाराचा वारसा आम्ही पुढे घेऊन जाऊ ...आणि देशात सामाजिक समता आणि शोषणमुक्त समाज स्थापित करण्यासाठी प्रयत्न करून प्रबोधनकार ठाकरे यांचे स्वाप पूर्ण करू हाच त्यांच्या जयंतीनिमित्त संकल्प करूया ...तसेच प्रबोधनकार ठाकरे यांचे विचार शिवसेना मनसे ठाकरे कुटुंबीय यांनी समजून घ्यावेत त्यांचे साहित्य वाचून घ्यावे आणि मग कोणते राजकारण करायचे ते ठरवावे...

प्रबोधनकार ठाकरे यांच्या जयंतीच्या सर्वाना शुभेच्छा !!!


रामास्वामी पेरियार (1879-1973), इरोड, तमिलनाडू, दक्षिण भारत का शेर, ब्राह्मणवाद के कट्टर निर्भीक विरोधी. स्वाभिमान आन्दोलन, जस्टिस पार्टी व द्रविड़ आन्दोलन के जनक. मूलनिवासी समाज के इस नायक को उनके जन्म दिन (17 सितम्बर) पर सादर नमन.

जब वाजपेयी बोले...नरेन्द्र मोदी ने कहां निभाया राजधर्म

Live हिन्दुस्तान

- ‎3 मिनट पहले‎







गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का आज 64वां जन्मदिन हैं। इस मौके पर उनके समर्थकों और पार्टी कार्यकर्ताओं में जबरदस्त उत्साह देखा जा रहा है। मोदी के जन्मदिन को खास बनाने के लिए उनके समर्थकों ने खास तैयारियां की है। दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी के जन्मदिन के मौके पर बीजेपी मंगलवार से अपना चुनावी अभियान शुरू करेगी। गौर हो कि भारतीय जनता पार्टी ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को 13 सितंबर को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था। बीजेपी की तरफ से पीएम पद का उम्मीदवार बनने के बाद मोदी आज अपना पहला जन्मदिन मना रहे हैं। चलाते थे चाय की दुकान गुजरात पर राज ...


Status Update

By Bamcef UP

'पेरियार' ई वी रामासामी नायकर को उनके जन्म दिन पर सादर नमन .///

अन्य पिछड़ी जाति (OBC ) जिनकी आबादी 52 % है और अनुसूचित जाति/जनजाति दोनों ब्राह्मणवादी व्यवस्था के सताए हुए है. ब्राह्मणवाद ने दोनों को अधिकारविहीन एवं शिक्षा विहीन रखा. दोनों ने एक साथ दुःख भोगा है. जहा अनुसूचित जाति/जनजाति ब्राह्मणवादी व्यवस्था का दुःख भोगी(Sufferer) है वही अन्य पिछड़ी जाति (OBC ) सह-दुःख-भोगी(Co-Sufferer) है. मान्यवर कांशी राम कहते थे की संगठन हमेशा दुःख भोगी(Sufferer) और सह-दुःख-भोगी(Co-Sufferer) का बन सकता है. शोषित और शोषक का संगठन कभी नहीं बन सकता है. देश में जब भी दुःख भोगी(Sufferer) और सह-दुःख-भोगी(Co-Sufferer) का ध्रुवीकरण एक साथ होने लगता है तो ब्राह्मणवाद का सिंघासन हिलने लगता है. और फिर सिंहासन बचाने के लिए वे नया ब्राह्मणी षड़यंत्र तैयार करते है जिससे की अन्य पिछड़ी जाति (OBC) और अनुसूचित जाति/जनजाति ध्रुवीकरण को रोका जा सके और उनके बीच दुरी और नफ़रत को बढाया जा सके. प्रोनति में आरक्षण का मुद्दा यह नया षड़यंत्र है. इसका मुख्य उद्देश्य, अनुसूचित जाति/जनजाति प्रोनति में आरक्षण रोकना नहीं बल्कि अन्य पिछड़ी जाति (OBC) और अनुसूचित जाति/जनजाति ध्रुवीकरण को रोकना है. . इस षड़यंत्र से बाहर आने का उपाय यही है कि, अनुसूचित जाति/जनजाति के लोग अन्य पिछड़ी जाति (OBC) का प्रोनति में आरक्षण का मुद्दा उठाये. यह संबिधान सम्मत है और मंडल आयोग की संस्तुति भी है. बामसेफ ने यह मुद्दा अपने 2012/2013 के सभी राज्य अधिवेशनो और राष्ट्रिय अधिवेशन में भी चर्चा के लिए रखा कि ''अन्य पिछड़ी जाति (OBC) को प्रोनति में प्रतिनिधत्व क्यों नहीं''. माननीय रघुनाथ सिंह यादव राष्ट्रीय अध्यक्ष अर्जक संघ ने इस मुद्दे पर बोलते हुए कहा कि कि कुछ ओबीसी नेता इस मुद्दे का इस लिए विरोध कर रहे है..क्योंकि वे यह जानते है कि उनका परिवार क्रीमी लेयर में आता है इसलिए उनको OBC कि सुबिधायें नहीं मिलनी है. सामाजिक रूप से OBC होते हुए भी क्रीमी लेयर के कारण वो OBC नहीं हैं. क्रीमी लेयर के सिद्धान्त संबिधान का संबिधान मे कोई जिक्र नहीं है संबिधान केवल सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन के आधार पर ही पिछड़ापन परिभाषित करता है अतः क्रिमी लेयर के विरुध भी आन्दोलन चलना चाहिए....शायद तब ये बड़े नेता हमारे समर्थन में हों. राज्य के अधीन शिक्षा और रोजगार में आरक्षण संविधान के भाग-3, अनुच्छेद 15 (4) और 16 (4 ) के तहत मौलिक अधिकार के रूप में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के नागरिक के रूप में प्रदान किया गया है। "पिछड़े वर्ग के नागरिकों " मे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग सभी शामिल है किन्तु सरकार ने केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को रोजगार और पदोन्नति में आरक्षण प्रदान किया और अन्य पिछड़े वर्गों को छोड़ दिया। अनुच्छेद 16 (4) के तहत राज्य की सेवाओं में आरक्षण पाने के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग को 42 साल के लिए लंबा इंतज़ार करना पड़ा और तब भी अन्य पिछड़े वर्गों के लिए केवल प्रारंभिक भर्ती के लिए ही राज्य के रोजगार में आरक्षण प्रदान किया गया और उन्हे पदोन्नति मे अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के बराबरी में आरक्षण से वंचित किया गया यदपि कि सभी तीन श्रेणियों अर्थात अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग, संविधान के अनुच्छेद 16 (4 ) के तहत एक ही शब्द "पिछड़े वर्ग के नागरिक" द्वारा कवर हो रहे हैं. त्रिस्तरीय आरक्षण लागू करने के आंदोलन मे निम्न मुद्दे और शामिल कर ना चाहिये

1. ''अन्य पिछड़ी जाति (OBC) को प्रोनति में प्रतिनिधत्व मिलना चाहिए .

2. क्रीमी लेयर के सिद्धान्त संबिधान का संबिधान मे कोई जिक्र नहीं है इस लिए क्रिमी लेयर का नियम समाप्त होना चाहिए।

3. राष्ट्रिय न्यायिक आयोग गठित होना चाहिए और मेरिट के आधार पर प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से न्यायधीशों की नियुक्ति होनी चाहिए। कोलेजियम प्रणाली बंद होनी चाहिए। और न्यायपालिका मे समाज के सभी वर्गो के समुचित प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।

4. 1931 की जनगणना का डाटा काफी पुराना हो गया है इस लिए नया डाटा प्राप्त करने के लिए ओबीसी की जाति आधारित जनगणना होना चाहिए। और फिर उसके अनुसार ओबीसी को प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।

5. अगर तथाकथित सवर्ण छात्रों को यह आपति है कि ओबीसी को अपने कोटे मे ही रहना चाहिए तो, ओबीसी का कोटा उनकी जनसंख्या 52 % (1931 की जनगणना के अनुसार) कर देना चाहिए और भारतीय संबिधान भी समुचित प्रतिनिधित्व (adequate representation) के तहत इसका समर्थन करता है। 50 % प्रतिनिधित्व के सीलिंग के सिधान्त का संबिधान मे कोई जिक्र नहीं था।




Vaibhavkumar Shinde shared Dhananjay Aditya's photo.
Stop the nonsense by B.K.Modi
We want complete and immediate BAN ON BUDDHA SERIAL
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Buddha serial on ZEE TV is highly objectionable, insulting and distorting the history. This is a nasty efforts to destroy Lord Buddha's thoughts and to end Dr Babasaheb Ambedkar's Buddhist Revolution/Revivalism.
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Showing Siddharth was born through Putrakameshti Yagya is non-historic matter as well as it is gross insult of Shuddhodhana (Father of Siddharth.) Whether producer wanted to show his incapability?
Showing that Siddharth was born on the same Muhurt of Rama... is also false and it is attempt to indicate Buddha as an incarnation as Rama. Whereas we consider Him as a human being. There are ample proofs that Ramayana was written after Buddha.
There are much more objectionable things in the serial, which shall be given afterward.
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But Why B K Modi (Producer of this serial) is doing so? See the following SHOCKING FACTS and you will realise.
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Big Shock 1-
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B K Modi did not considered Ambedkarites Neo-Buddhists as a real Buddhists.
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Ref- Book- A Matter of Equity: Freedom of Faith in Secular India, By John Dayal. Page 68.
((The photo of which is given herein.))
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Shocking Fact 2- ---
Producer of Buddha serial B K Modi alongwith RSS Chief Shri Sudarshan, Dr. Pravinbhai Togadia, Sadhwi Ritambhara, Ashok Singhal, Shankaracharya...
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Proof:- From the Site of Vishwa Hindu Parishad.
Shri Bhupendra Kumar Modi has been organising Virat Sammelans in co-operation from other institutions like Council of Buddhist Organisation (Japan), World Buddhist Cultural Foundation (India), Hindu Heritage Pratishthan (Bharat), Modi Foundation (Bharat), Indian Cultural Study Association (Japan) etc.
as-
Hindu-Buddhist Sammelan
First Sammelan, Sarnath – 1994
RSS Chief Shri Sudarshan, Dr. Pravinbhai Togadia, Sadhwi Ritambhara and several Saint- Mahatmas participated in the Sammelan.
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For the details - http://vhp.org/hindus-abroad/hinduism-and-buddhism
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Shocking fact (3) of B K Modi- Producer of Buddha serial-
B K Modi to represent VHP at UN (News- July 25, 1998)
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Businessman B K Modi, the newly elected working president (external) of the Vishwa Hindu Parishad, will represent the organisation in the United Nations. He has been authorised by the VHP to represent the organisation and provide direction, guidance and assistance on all matters outside the country to help fulfill its overall objectives. The organisation will urge the UN to intervene in stopping conversions all over the world.
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http://www.rediff.com/news/1998/jul/25vhp.htm
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SHOCKING- 4-
Mr B K Modi, who now spends most of his time in New York, is the overseas president of VHP.
Mr B K Modi a top-gun in the Vishwa Hindu Parishad... News- 18-08-2013.ET.
http://articles.economictimes.indiatimes.com/2003-08-18/news/27559422_1_wll-players-tdsat-cellular-players
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Shocking 5 - B K Modi (Producer of Buddha serial) was a financier for Vishwa Hindu Sanskritik Nigam
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The celebration was organised by Parmarth Ganga Seva Nidhi and Vishwa Hindu Sanskritik Nigam, with the generous assistance of Dr. Bhupendra Kumar Modi, world renowned industrialist.
http://www.parmarth.com/updates/jan2000/
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हाय रे महंगाई। देश में खुशियां पल भर के लिए आती है और फिर रूठ कर जाने कहा चली जाती है। आवश्यक चीजों के बीच आपस में एक प्रतिस्पर्धा चल रही है कि देखते हैं कि लोगों को कौन ज्यादा रुलाता है। फिलहाल, प्याज और पेट्रोल दोनों के बीच रेस लगी हुई है। दोनों ही एक-दूसरे से आगे निकलने की कोशिश कर रहे हैं। वर्तमान पॉजिशन के हिसाब से प्याज से बाजी मार ली है।

पढ़ें : शतक मारने को बेताब प्याज, कीमत रिकॉर्ड स्तर पर

पेट्रोल की कीमतें आसमान छू रही हैं, और प्याज की कीमतें तो बादलों के पार ही चली गई हैं। प्याज की कीमत पेट्रोल से भी ज्यादा हो गई है। दिल्ली की मंडी में प्याज 75-80 रुपये किलो तक बिक रहा है जबकि पेट्रोल की कीमत 76 रुपये प्रति लीटर के आसपास है।

पढ़ें : रुपये और प्याज की 'दोस्ती'

आम लोगों को महंगाई ने ऐसा डसा है कि अब आंखों के आंसू भी सूखते जा रहे हैं। खाने पीने की चीजों के दामों में 50 फीसद से ज्यादा बढ़ गई है। दिल्ली समेत उत्तर भारत के कई शहरों में प्याज 80 रुपए किलो तक बिक रहा है। माना यह भी जा रहा है कि अगर जल्द हालत में सुधार नहीं आया तो यह 100 रुपए प्रति किलो तक भी पहुंच सकता है।

पढ़ें : टूटी सस्ते की उम्मीद, पेट्रोल फिर हुआ महंगा

लोगों का कहना है कि प्याज खरीदने से पहले सोचना पड़ता है कि इसे लें या न लें। हालांकि, प्याज के बिना काम भी नहीं चलता। उधर, मध्य प्रदेश के लोग भी प्याज के दामों से परेशान हैं। जब तरह से प्याज की कीमतें बढ़ रही हैं उससे ये साबित होता है कि आम लोगों के लिए कही जाने वाली चीज एक दुर्लभ सब्जी बन गई है और इसके लिए सरकार जिम्मेदार है।

प्याज और दूसरी सब्जियों के बेहताशा बढ़ते दामों की वजह से खाद्य महंगाई दर में इजाफा हुआ है। अगस्त महीने में खाद्य मंहगाई दर बढ़कर 18.18 फीसद पहुंच गई है। जुलाई में ये दर 11.91 फीसद थी। इस वजह से थोक मंहगाई दर छह महीने के सबसे ऊंचे स्तर 6.1 फीसदी पर पहुंच गई है।

पढ़ें : ऐसे भराएंगे पेट्रोल तो बचेंगे पैसे, क्लिक करें और जानें कैसे

आखिर क्यों बढ़ रही है प्याज की कीमतें

असल में दक्षिण भारत में बारिश के कारण प्याज की आपूर्ति कम हुई है। उत्तर और पश्चिम भारत में प्याज पहले नासिक से आता थे। लेकिन वहां बारिश की वजह से प्याज की फसल बर्बाद हो गई थी तो अब प्याज दक्षिण भारत में हुगली से आ रहा है। लेकिन वहां भी बारिश हो रही है। जब आपूर्ति कम हुई तो प्याज की जमाखोरी होने लगी इसलिए कीमत और बढ़ गई। तेल की कीमतें भी बढ़ने से माल भाड़ा बढ़ गया। जिससे प्याज की कीमतें बढ़ गईं। नासिक की थोक मंडी में जहां प्याज सबसे ज्यादा आता है। कीमतें आसमान छू रही हैं। नासिक की मंडी में प्याज 5700 रुपये प्रति क्विंटल मिल रहा है। नई फसल 15 अक्टूबर के बाद आएगी तो फिलहाल दाम कम नहीं होंगे।


Chasing dollars, government wants gilts to bond with the best on global indices

http://economictimes.indiatimes.com/news/economy/finance/chasing-dollars-government-wants-gilts-to-bond-with-the-best-on-global-indices/articleshow/22640156.cms


The finance ministry is considering a proposal that will see the $30-billion limit rise by a third once investments hit 80% of the quota.

Editor's Pick

ET SPECIAL:

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By Deepshikha Sikarwar, ET Bureau | 17 Sep, 2013, 09.58AM IST

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NEW DELHI: The finance ministry is seeking to include government securities in popular global bond indices, a move experts estimate could fetch extra foreign investment of about $40 billion a year in sovereign debt.


To achieve this, it's evaluating a plan to automatically raise the overseas investment limit in sovereign debt, along the lines of a model followed by Brazil.


The finance ministry is considering a proposal that will see the $30-billion limit rise by a third once investments hit 80% of the quota. Foreign institutional investors (FIIs) can invest up to $25 billion while sovereign wealth funds are allowed to invest up to $5 billion.


"This is an idea that we are actively considering," a senior finance ministry official told ET.


Inclusion in global indices would require significant changes to regulations governing India's debt market, notably scrapping the limit on foreign institutional investment in government debt. "The automatic increase formula should be acceptable," the official said, citing the case of Brazil.

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The Latin American country's debt has been included in the JPMorganEmerging Markets-Global Diversified Index I on the basis of a similar formula as it is yet to scrap the limit on foreign investment in sovereign debt.


Standard Chartered, in a September 12 report, had estimated additional inflows of $20-40 billion if the annual ceiling on foreign investment was scrapped.


The official said the government has already held one round of discussions with market participants. More stakeholders will be consulted on the matter, the official said. The proposal also figured in recent discussions between representatives of foreign institutional investors (FIIs) and Finance Minister P Chidambaram in Mumbai recently.


Inclusion in one or more of the global indices would help create an international presence for Indian debt and draw a new class of investors to the country.


India has already removed the sub-caps on foreign investment in government debt and also discontinued the auction of available limits.


Experts said the move should not be seen as part of the government's efforts to attract capital flows to fund the country's current account deficit but as a step to deepen its own debt markets. "This can lead us to the deepest pool of liquidity and bring in a new set of investors altogether. It should not be confused as a window to fund current account deficit," said Jyoti Rai, senior vice-president, SBI-SocGen Global Securities. In all, foreign investors can invest up to $81 billion in Indian debt. This consists of $30 billion in G-Secs and $51 billion in corporate debt, which includes infrastructure companies.


The move will also help internationalise the rupee that has lost nearly 15% in the current fiscal over concerns the country may not be able to fund its record current account deficit amid any withdrawal of the US Fed Reserve's stimulus programme.


Measures announced by the government to rein in gold imports and those by RBI have helped the currency trim the depreciation that had at one point exceeded 20%.


Seven levers marketers are pulling to beat slowdown

http://economictimes.indiatimes.com/news/news-by-company/corporate-trends/seven-levers-marketers-are-pulling-to-beat-slowdown/articleshow/22640970.cms

By Lijee Philip & Kala Vijayaraghavan, ET Bureau | 17 Sep, 2013, 06.29AM IST


Chief marketing officers are having to work harder and smarter, and these are the seven levers they are pulling to beat this slowdown

Editor's Pick

Videocon Industries Ltd.

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By his own admission, mayank Pareek, who is responsible for ensuring that cars keep moving out of Maruti SuzukiBSE 1.69 %showrooms at a faster pace than never, says he has no personal life today. Cars are not moving at India's biggest carmaker like they used to. "I am working seven days a week," says Pareek, chief marketing officer. "Tough times call for tough measures. We can't be selling cars sitting in the office."

In August, MarutiBSE 1.69 % organised about 26,000 events aimed at the consumer, including exchange melas, camps for financing and AC check-ups. "The idea is to reach every potential consumer and convert them into a buyer," he says. It's a challenge for every chief marketing officer (CMO) in this slowdown, and it's not an easy one to overcome. "There are no homogenous customers," says Sunil Kataria, CMO atGodrej Consumer ProductsBSE -0.45 %.

In the first two quarters, the Indian economy has grown at a tepid 4.8% and 4.45, respectively. And the forecast for the entire year is only mildly better— 5.3%, according to a panel advising the prime minister last week. High prices and job insecurity, in the face of economic uncertainty, has upset consumer confidence, with spends on electronics and automobiles dropping for eight months in a row.

Yet, Kishore Biyani, who knows a thing or two about the Indian consumer, feels this is not the time for companies to be defensive. "It is the time to be aggressive," he says. "If marketers keep quiet, the consumer will keep quiet. One has to behave normally during such times." Not CMOs, though, who are having to deal with reluctant consumers, tighter budgets, and a competitive and changing marketplace. Even as they pull these six levers to beat the slowdown, there's a seventh one they cannot afford to let go off.

1. Find new niches

Alongside marketing campaigns aimed at the consumer in general, some companies are targeting niches for growth that is more visible, is easier to record and comes at a lower cost. For Maruti, this thinking has seen it pinpoint and drive into settlements, with a need and purchasing power, like priests in Tamil Nadu and turmeric growers in Nashik. "So, it's not mass marketing, but niche marketing," says Pareek, the carmaker's CMO.

Having a widespread network helps as such campaigns become just incremental work for a sales team. They can make a catch and return to their bread-and-butter. More recently, adds Pareek, Maruti has been adopting a similar strategy in Jamnagar, Gujarat, where groundnut and cotton farmers have seen a kicker in their incomes following a good crop and higher prices. Elsewhere in the state, its sales executives, pitching its Eeco as a cost-efficient mode of transportation, recently sold 40 vans to restaurant or motel owners on the highways of Ahmedabad and Baroda.
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Similarly, earlier this year, Vodafone launched a campaign for migrant workers in mid-town Mumbai to teach them how to use a mobile application of the Indian Railways to book train tickets. "A number of these workers have entry-level phones," says Vivek Mathur, chief commercial officer, Vodafone India. "With an application, they see the utility of a data connection against MBs or GBs of a data plan."

Godrej Consumer found new consumers for its room and car fresheners, Aer, through a new distribution channel. In the first five months of launch, Godrej was selling Aer as an FMCG product, moving it through traditional and modern trade. After its consumer research showed home care and car care to be different segments. "Car buyers are very passionate about what they use in their car and spend time in car accessory shops," says Kataria of Godrej. "We quickly appointed separate distributors for car accessory shops."

2. Get out of the office

It took several consumer interactions for Godrej realised its folly on how to distribute Aer. But those consumer interactions were not by default, but by design. This June, Godrej kicked off an initiative called 'conquest', whose objective is to have five employees meet 100 consumers in a week, gather information, process it scientifically and embed it into decision-making.

The mid-course change in how Aer was to be distributed was one example of Conquest at work. "The main idea behind Conquest is to pick consumer knowledge first hand and work on it swiftly," says Kataria. "In regular research, there is a transition loss that tends to happen as research agencies moderate and diagnose data."

Most companies, in their own way, are strengthening their efforts to reach the consumer. In early-2013, mobile service provider Idea Cellular started participating in 'haats'—local markets, typically organised on a weekly basis, both in rural and urban areas. Idea now sets up a permanent stall in haats in 450-500 districts, with each market serving a population of 2,500.

According to Himanshu Kapania, chief executive of Idea, 60% of the company's customers are in rural areas. Elsewhere, Axis Bank is also promoting more field initiatives to win new business. One such initiative aims to get more senior citizens to open accounts with the bank. Its product, called Senior Citizen Privileged Account, offers health checks, bill payment facilities, an ID card for medical emergencies and a CD of old movie songs. "Banking is not an acquisition business like FMCG," says Manish Lath, head of marketing, retail liabilities & electronic banking, Axis Bank. "It is really a relationship business."

3. Engage more with sellers

Consumers are one touch-point of such outreach exercises. The other is the links between the company and the consumer: dealers and retailers. Increasingly, CMOs acknowledge, it is in their interest to do so as these two sets are influencing sales in a bigger way; they are no longer dormant channels and, today, have the power to convince consumers to choose a particular brand.

According to Nilesh Gupta, director of consumer durables retail chain Vijay Sales, Apple is the only brand that has the differentiation for a marketer to call the shots, and even that is under question today. "There is no brand or product differentiation in the market today," he says, in the context of consumer durables. "Usually, the dealer may have the final say in the brand choice picked up by the consumer."

So, companies are offering incentives. This April, Aircel launched a reward scheme for its retailers, targeting their wives: the wife whose husband sold the highest number of Aircel connections got a Hyundai Santro car, the runner-up got to meet MS Dhoni, captain of the Indian cricket team.

If it's not incentives, it's meetings. "It is important in a downturn, and amid killing competition, to have your trade channels back you solidly," says Salil Kapoor, CMO of Dish TV. "We have been directly meeting our top-performing 7,000 dealers of our 48,000 dealerships in the last few days to solve on-the-ground issues and motivate them."


"You manage dealer problems and they will manage yours," says Chandu Virani, managing director of Balaji Wafers. For many years now, Virani has been holding an annual meeting of 25-50 dealers, of Balaji's 800-plus dealers; he is now increasing their frequency. There is no talk of sales. Instead, Virani listens to the problems of dealers and tries to offer immediate solutions.


4. Make a rural push


In today's skidding market, the top-of-the-mind concern for dealers and companies alike is growth. Kapoor of Dish TV says market trends in India, especially in urban areas, is a partial repeat of 2008, when a feeling of gloom pervaded over India following a financial crisis in the west.


Concerns on job losses, a declining rupee and mortgages is an urban phenomenon, adds Kapoor. "Half of the problem is sentiment-driven," he says. "But the villages are not affected by this gloom talk." Harvests in general have been good, yielding higher incomes for farmers, and this likely to see them spend more. Dabur expects growth in rural India to be 30-40% higher than urban markets.


Pareek of Maruti says the company has identified about 300 rural niches in recent years, which account for 10% of its domestic revenues.


These include potato growers in West Bengal , blue-pot tery make r s i n Jaipur, timber merchants in Gujarat, turmeric growers in Tamil Nadu, granite pol i sher s in Hyderabad, painters in Madhubani in Bihar, and manufacturers of nuts and bolts in Sonepat.


An August 2013 study by Nielsen, titled 'India: Boom or Bust', validates the rural push of companies. The report says that of the 400,000 new stores set up in India in 2012, more than 70% were in rural areas. CMOs expect companies to stay this course, not just in terms of where all they are but also in terms of what products they offer. So, for example, Emami, Dabur, LG and Videocon are looking to go beyond small packs and entry-level products, with larger packs and mid-range products, in the belief that consumers in rural areas will start upgrading. LG plans to ship more smartphones and flat-screen TVs to villages and smaller towns in this festive season.


5. Entice with the price


The Nielsen report cited above says the companies that did well are those that "were not so aggressive on price...they recognised the pressures on the consumer". The report says that in 2012, the five fastest-growing FMCG companies in increased product prices by an average of 8.2%, against 11% in 2011. By comparison, the bottom five companies raised prices by a greater amount —12.5% in 2012, against 9.3% in 2011. In this slowdown, price has emerged as an important lever, both as perception and as real value. The auto industry, which is reeling under eight consecutive months of declining sales, leads the way, with price cuts and hefty discounts. For example,Hyundai pitched its Grand i10 Rs 50,000-80,000 cheaper than Maruti Swift; Ford launched its new and improved Figo at its previous-generation price, of Rs 3.99 lakh; manufacturers sought to disrupt the market with aggressive pricing of brand new models like Ford EcoSport (Rs 5.99 lakh) and Honda Amaze (Rs 4.99 lakh).


In the FMCG space, bundling, promotions and discounts are galore on soaps, shampoos and laundry. So, for example,Hindustan Unilever is offering a discount on its premium detergent brand Surf Excel Matic, while P&G is offering 15% extra shampoo on its Rs 3 sachets. It helps them the cost of crude oil and palm oil, key ingredients for soaps and detergents, have declined 7% and 3%, respectively, in the past few months


6. Keep innovating


Even as they play defence and keep a check on prices, the slowdown winners also turn on the offence and keep innovating, observes the Nielsen report. More importantly, they support these new launches. The new launches made in 2011 by the five fastest-growing FMCG companies grew five times in value terms in 2012, against two times for the bottom five companies in the set.


Devendra Chawla, president, Food Bazaar, a modern retailer, says FMCG companies have dared to take big bets with new product and category launches in 2013. The list of new product launches— not refreshes—in this slowdown is long and formidable. So, for example, with its whitening toothpaste, Colgate launched a new category, pricing its product at a 50% premium to other products in the market. P&G launched its big toothpaste brand Oral B in India a month back.


There's also HUL's hair care brand Tresemme, Marico's Saffola Masala Oats, Engage Deo by ITC, Park Avenue Beer shampoo, Instant Chinese noodles by ITC, Dettol Kitchen byReckitt Benckiser, Odonil gel from Dabur, Alpino chocolates by Nestle. "The consumption economy is definitely leading to consumers willing to pay for differentiated products," says Kataria of Godrej, which has launched two new products and two product variants in the last 10 months.


At Big Bazaar, for example, olive oil sells more than Marico's Saffola. Chawla says modern trade has helped companies drive sales in new categories: while its contribution in overall sales growth has been 7-8%, it's been 35-50% in new-age categories such as anti-aging creams, health foods like oats and toilet cleaners. "In a way, it is a new marketing lever—focusing from general to specific, and with a long-term strategy," he says.


7. Keep thinking long term


Rajiv Bajaj, managing director of Bajaj Auto, has a different thinking on offering too many brands. "The marketing principle is that the width of the brand portfolio must be inversely proportional to the breadth of the markets that one seeks to address," he says. "Unfortunately, most marketers lead their companies to offer more and more brands as they seek to enter more and more markets.


That's usually the beginning of the misadventure to a sorry end." In the domestic market, Bajaj has just two brands: Pulsar and Discover. K Ramakrishnan, president marketing of Cafe Coffee Day, also stresses on holding on to the basics as a guiding force. "Life (for a SMO) has always been full of complications and changes, and we have to accept that," he says. "If there is primary focus on the value offered by the brand, I think, one is on safe ground."


It's why Bajaj feels marketers should think less about the world and more about their brand. "When there are too many competitors and not enough customers, CMOs need to heed (marketing guru) Jack Trout's advise, 'differentiate or die', and reorient their organisations from being manufacturers and sellers of products to becoming an engineer of categories and a marketer of brands."


Marketing consultant Suman Srivastava feels marketers are probably making little headway in unconventional ways to reach the consumer because the marketing tools being used today are primarily for FMCG products and evolved in the 1960s, for a different consumer. "Today, FMCG is just one of the various product categories," says Srivastava, founder of Marketing Unplugged. "The world has changed and the CMO has to change dramatically too. Their immediate instinct is to control the communication to the consumer like speaking from a podium; they are not having a conversation with them."


(With Deepali Gupta and Writankar Mukherjee)



Invitation - Regional conference of All India Union Of Forest Working People (Kaimur Region)

28-29 September 2013

Renukut, Sonbhadra UP

Theme - Implementation of Forest Rights Act and strengthening of forest working people Union in the region


Dear all,

As you all know that the implementation of the Forest Rights Act is very poor in the entire country. The government both central and state governments have not shown any political will to implement this Act in its true spirits. Except in those areas where people's movement has been strong the forest people are themselves educating and pressurizing state to implement this Act. The state has not been able to undo the "historical injustice" as enshrined in the preamble to million of people living or depending on the forest for their livelihood till now. The colonial legacy in the form of forest department is still the biggest villain that is creating hurdles in implementation of this Act. Not only this the bureaucratic machinery along with the local feudal and capitalist forces with the help of police  is very much active to subvert this Act. It is very clear now that until and unless we unite it will not be possible to get this Act implemented. That is why the National Forum of Forest People and Forest Worker took resolution in its fourth national convention to form "All India Union Of Forest Working People" (AIUFWP) in Puri Odisha from 3-5th June 2013 to unionize around the issue of forest rights.


In order to strengthen the unionization process we are Organizing first regional conference of union of Kaimur region of UP, Jharkhand and Bihar on 28-29 September 2013 in industrial town of Sonbhadra Renukut. In this conference the political strategy of strengthening the union, movement will be built. In this conference many forest people will join from Tarai region, Bundelkhand, Jharkhand and other parts of our country. Many regional conference of AIUFWP will take place in other parts of the country in coming months and finally a preparation will be done to organize a big mass rally in Delhi before forth coming Parliamentary election.


we invite you all to participate in this. kindly find the hindi programme attahced.


In Solidarity

Roma

(Dy. Gen. Sect)

(AIUFWP)


दुनिया के मज़दूरों एक हो                                                           जल  - जंगल और ज़मीन

एक हो -   एक हो                                                           हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है

हम मेहनतकश जग वालों से जब अपना हिस्सा मांगेंगे

इक देश नहीं इक खेत नहीं हम सारी दुनिया मांगेंगे

                                                            -फ़ैज़ अहमद ''फै़ज़''


शहीद-ए-आज़म भगतसिंह के 106 वे जन्मदिवस के महान अवसर पर

अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन (कैमूरक्षेत्र) का

प्रथम क्षेत्रीय सम्मेलन

दिनांक 28-29 सितम्बर 2013, गाॅधी मैदान रेणूकूट-सोनभद्र उ0प्र0


प्रिय साथियों!

जैसा कि आप जानते हैं कि दिनांक 28 सितम्बर 2013 को देश की ब्रिटिश हुक़ूमत से आज़ादी के लिए अपनी जान न्योछावर कर देने वाले अमर शहीद-ए-आज़म भगत सिंह का 106वां जन्मदिवस है। शहीद-ए-आज़म भगत सिंह ने हंसते-हंसते मौत को इसलिए गले लगा लिया था कि उनका सपना ना सिर्फ़ ब्रिटिश हुक़ूमत से देश को आज़ाद कराने का था, बल्कि कुव्यवस्था की ज़ंजीरों  में बड़ी ताकतों द्वारा जकड़े गये तमाम वंचित तबकों, महिलाओं, दलित-आदिवासियों को भी इस कुव्यवस्था से आज़ाद कराने का भी था। लेकिन 66 वर्ष पूर्व देश अंग्रेजों से आज़ाद तो हुआ लेकिन आज़ादी की लड़ाई में सबसे ज़्यादा बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने वाला देश का वंचित तबका तब भी आज़ादी से महरूम रह गया। खासतौर पर देश के वनक्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी-अन्य वनाश्रित समाज व इस समाज की महिलाओं को और अधिक गुलाम बना लिया गया और अंग्रेजों द्वारा वन-संसाधनों की लूट व लोगों की वनक्षेत्रों से बेदखली के लिए बनाई गई वनविभाग जैसी संस्था और बड़ी-बड़ी कम्पनियों का वनों पर शासन तंत्र मज़बूत करने के लिए नए-नए कानून बनाने शुरू कर दिए गए व पुराने 1927 के काले कानून भारतीय वन अधिनियम को और सख्त कर दिया गया। लेकिन दूसरी तरफ आदिवासी-वनाश्रित समाज के अन्दर लगातार फैलते आक्रोष के कारण इन तबकों ने अपने आंदोलनों को भी तेज़ कर दिया व एक जगह पर इकट्ठा होने लगे। इन्हीं आंदोलनों के दबाव में सरकार को देश के इतिहास में पहली बार आदिवासी-वनाश्रित समाज के जंगल पर हकों को स्थापित करने की मान्यता देने वाला वनाधिकार कानून बनाना पड़ा और जिसे 15 दिसम्बर 2006 को संसद में पारित भी कर दिया गया और 1 जनवरी 2008 से नियमावली बनाकर लागू भी।

लेकिन आज इस कानून को भी पास हुए लगभग 7 वर्ष बीत जाने के बाद भी (केवल कुछ उन जगहों को छोड़कर जहां लोग खुद अपनी सांगठनिक ताक़त से इसे लागू करने के लिए पहल कर रहे हैं व सफलता भी हासिल कर रहे हैं) इस कानून के वास्तविक क्रियान्वयन की प्रक्रिया ना सिर्फ अधर में ही लटकी हुई है, बल्कि वनविभाग व बड़ी कम्पनियों के नुमाईंदों द्वारा वनाश्रित समाज व इस समाज की महिलाओं पर की जाने वाली जु़ल्म-ओ-ज़्यादती की सारी हदों को पार किया जा रहा है व इस कानून को लागू करने के लिए जिम्मेदार पुलिस व प्रशासन इनको मदद करने में जुटे हुए हैं और केन्द्र सरकार सहित प्रदेश सरकारें इस ओर से पूरी तरह से आंख बन्द किए हुए बैठी हैं।

उ0प्र0, बिहार व झारखण्ड में कैमूर घाटी की पहाडि़यों पर बसे हमारे कई जनपदों सोनभद्र, मिर्जापुर, चन्दौली, कैमूर भभुआ, रोहताश और गढ़वा जो कि इन सभी प्रदेशों के बड़े वनक्षेत्र वाले जनपद है और इनकी आबादी का करीब 80 प्रतिशत हिस्सा आदिवासी-वनाश्रित समाज से है में इसके बावज़ूद इनमें कानून के सरकारी क्रियान्वयन की स्थिति कम-ओ-बेश यही बनी हुई है, लेकिन यहां की वनाश्रित समाज की महिलाओं ने संगठित रूप से इस कानून में मान्यता दिये गए अधिकारों को हासिल करने के लिए पहल की व अपने अधिकारों को हासिल करने में सफलता भी प्राप्त की। लेकिन यहां वनविभाग, बड़ी कम्पनियां और सामंती तबकों ने यहां के आदिवासी-दलित ंअन्य वनाश्रित समाज पर तरह-तरह से हमले करने की कार्रवाईयों को तेज़ कर दिया है। संवैधानिक अधिकार और वनाधिकार कानून में दिए गए 13 विकास कार्यों के अधिकारों में शामिल स्वास्थ सुविधाओं को पाने के अधिकार के बावज़ूद यहां की दुद्धी तहसील में निजि कम्पनी हिन्डालको द्वारा संचालित अस्पताल में हमारे यूनियन की राष्ट्रीय नेतृत्वकारी आदिवासी महिला साथी सोकालो गोण्ड के 13 वर्षीय पुत्र श्रवण कुमार की यहां डाक्टरों द्वारा पूरी तरह से बरती गई लापरवाही के कारण मौत हो गई और यहां के लापरवाही बरतने वाले डाक्टर इस मामले से अभी तक पूरी तरह से पल्ला झाड़ने में जुटे हुए है। हालांकि इस मामले को लेकर अ.भा.व.ज.श्रमजीवी यूनियन के आंदोलनरत होने पर जिला प्रशासन द्वारा एक जांच समिति का गठन किया गया, जिसमें प्रशासनिक व पुलिस अधिकारी तथा विशेषज्ञ डाक्टरों को शामिल किया गया। इस जांच दल ने दिनांक 7सितम्बर को रेणूकूट का दौरा करके जांच की है, जिसमें दोषी डाक्टर व डाक्टरों की लापरवाही से मृतक बालक श्रवण कुमार की माता सोकालो गोण्ड के बयान भी दर्ज किए हैं। जल्द ही जांच दल की रिपोर्ट सामने आने पर अगली कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी। इसमें भी दोषी हिन्डालको कम्पनी के प्रतिनिधियों ने अपने दामन पर लगे खून के छींटों को धोकर अपने गुनाह से पल्ला झाड़ने की नीयत से जिला प्रशासन द्वारा पूरे नियम कायदों को ध्यान में रखकर बनाई गई समिति की वैद्यता पर ही सवाल खड़े किए गए हैं। गौरतलब है कि सरकार द्वारा रेणूकूट व इसके आसपास के करीब 100 कि0मी0 तक बसे लोगों के स्वास्थ को एक निजि अस्पताल के हवाले कर दिया गया है, जोकि मनमाने ढंग से यहां बसे आदिवासियों व अन्य गरीब तबाकों के लोगों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं, जबकि वनाधिकार कानून के आने के बाद सामुदायिक अधिकारों के तहत भी स्वास्थ व शिक्षा जैसी महत्वपूर्ण ज़रूरतों को पूरा करना अब सरकार की जिम्मेदारी है, जिसे  सरकारों द्वारा पूरी तरह से अनदेखा किया जा रहा है।

साथियों! यह स्थिति जब से उ0प्र0 प्रदेश में नई सरकार आई है पूरे प्रदेश में चल रही है और बिहार व झारखण्ड में तो कानून के क्रियान्वयन की स्थिति इतनी दयनीय बनी हुई कि यहां के अधिकारी खुले तौर पर कहने में गुरेज़ नहीं कर रहे कि ''यहां वनाधिकार कानून के क्रियान्वयन की ज़रूरत ही नहीं है''। केवल नक्सलवाद का हौवा खड़ा करके करोड़ों रुपये के पैकेज लाकर डकार जाना ही इनका धन्धा बना हुआ है। वनाधिकार कानून का वनविभाग व पुलिस प्रशासन द्वारा खुले आम उलंघन किया जा रहा है। वनाश्रित समुदायों के अधिकारों को मान्यता देने वाले इस क्रांतिकारी कानून के क्रियान्वयन की प्रक्रिया एकदम ठप कर दी गई है, वनविभाग द्वारा कहीं हत्या करके, कहीं प्रशासन द्वारा गांवों में पीएसी फोर्स आदि लगाकर तो कहीं जापान की जायका कम्पनी द्वारा वृृक्षारोपण के नाम पर लोगों के हाथ से उनके हक़ वाली ज़मीनों को छीनने की कोशिश की जा रही है। जबकि वनाधिकार कानून के आने के बाद वनविभाग जंगल क्षेत्र में ऐसी किसी भी कार्रवाई को अंजाम नहीं दे सकता। कैमूरक्षेत्र में एक लम्बे समय तक आदिवासी-वनाश्रित समाज के अधिकारों के लिए जीवनपर्यन्त लड़ने वाले डा0 विनियन ने कैमूर क्षेत्र में स्वायत्त परिषद बनाने व इस क्षेत्र को पांचवी अनुसूचि में शामिल करने की मांग उठाई थी व संघर्ष किया था, यह महत्वपूर्ण मुद्दे भी वहीं अपनी जगह पर आज भी खड़े हुए हैं। लेकिन दूसरी ओर वनाश्रित समुदायों के लोग भी अपने संघर्षों को तेज़ कर रहे हैं और ये सभी संघर्ष महिलाओं की अगुआई में लड़े जा रहे हैं। जैसा कि आपको विदित होगा कि वनाधिकार कानून में सितम्बर 2012 में कुछ संशोधन भी किए गए हैं। इन संशोधनों में वनाश्रित समाज के जंगल व जंगल की तमाम तरह की लघुवनोपज को अपने परिवहन संसाधनों से बे रोक-टोक लाने, स्वयं इस्तेमाल करने व अपनी सहकारी समितियां-फैडरेशन आदि बनाकर बाज़ार में बेचने के मान्यता दिए गए अधिकारों को और अधिक स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। इस अधिकार को पाने के लिए एक और तीसरे दावे को वनसंसाधनों पर अधिकार के दावे के रूप में दिया गया है, जिसे सबसे पहले भरकर अपना दावा ग्राम समितियों के माध्यम से उपखण्डस्तरीय समिति को सौंपना नितांत आवश्यक है। इन सभी कार्यों को करने व अपने संघर्षों की धार को और तेज़ करने के उद्ेश्य से यूनियन द्वारा कई तरह के कार्यक्रम भी तय किए जाने हैं।

जैसा कि आपको यह भी विदित है कि हमने संगठन व संगठन के संघर्षों के बढ़ते हुए स्वरूप को देखते हुए इसी वर्ष दिनांक 3 से 5 जून को पुरी-उड़ीसा में एक सम्मेलन आयोजित करके अपने संगठन राष्ट्रीय वन-जन श्रमजीवी मंच  को अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन  के रूप में तब्दील कर दिया है। साथियों यूनियन की सारी ताक़त उसके सदस्यों व सदस्यों की संख्या में होती है। हमने पुरी में सामूहिक रूप से यह भी संकल्प लिया था कि हम इस वर्ष के अन्त तक केवल उ0प्र0 से 50000 की संख्या में सदस्यता बनाएंगे। यूनियन की मज़बूती के लिए यूनियन के सदस्यता अभियान को तेज़ी देने व अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए सरकारों पर दबाव बनाने के उदे्श्य से उ0प्र0 के विभिन्न वनक्षेत्रों और प्रदेश के आस-पास के प्रदेशों उत्तराखण्ड, बिहार, मध्य प्रदेश आदि में यूनियन के सम्मेलन आयोजित करना व अन्त में आने वाले लोक सभा चुनावों से पूर्व ही दिल्ली में एक विशाल प्रदर्शन करने का भी यूनियन द्वारा निर्णय लिया गया है।  जिसमें देशभर के वनक्षेत्रों से कम से कम 50000 की संख्या में आदिवासी वनाश्रित समाज की महिलाएं व लोग तथा वनाधिकार कानून के मुद्दों पर काम करने वाले जनसंगठनों व मददगार मित्र संगठनों के लोग इकट्ठा होकर संसद भवन के सामने प्रदर्शन करेंगे व केन्द्र सरकार से सवाल पूछेंगे कि कानून आने के बाद 7 सालों में दोबार सत्ता पर काबिज रहने के बावजूद आखिरकार वनाधिकार कानून को क्यूं ठंडे बस्ते में डाला गया है और वनविभाग व सरकारों द्वारा वनाश्रित समाज के बीच फैलाए जा रहे आतंक पर क्यूं कोई रोक नहीं लगाई जा रही है?

साथियों! इसी कड़ी में हम दिनांक 28-29 सितम्बर 2013 को देश की आज़ादी व वंचित समाज के लिए मात्र 23 वर्ष की उम्र में शहीद हो जाने वाले जांबाज़ युवा शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के 106वें जन्म दिवस के महान अवसर पर कैमूर क्षेत्र स्थित रेणूकूट जनपद सोनभद्र में अपने यूनियन का प्रथम सम्मेलन आयोजित करने जा रहे हैं। इस सम्मेलन में कैमूर क्षेत्र के जनपद सोनभद्र, मिर्जापुर, चन्दौली, बिहार अधौरा, रोहताश, झारखण्ड व अन्य वन क्षेत्रों तराई लखीमपुर खीरी, गौण्डा, बहराईच, पीलीभीत, बुन्देलखण्ड चित्रकूट कर्वी, मानिक पुर, बांदा, मध्यप्रदेश रीवा, पश्चिमांचल सहारनपुर, उत्तराखण्ड राजाजी नेशनल पार्क व इनके अलावा देश के कई हिस्सों से वनाश्रित समाज के लोग व वनाधिकार के मुद्दों पर काम करने वाले जनसंगठनों व मददगार संगठनों के नेतृत्वकारी प्रतिनिधिगण व संवेदनशील नागरिक समाज के अन्य बुद्धिजीवी वर्ग के लोग भी बड़ी संख्या में शामिल होंगे। इनमें प्रमुख रूप से अरुणांचल महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष व अ.भा.व.श्र.यूनियन की अध्यक्ष सुश्री जारजूम ऐटे, कार्यकारी अध्यक्ष व पूर्व राज्यमंत्री श्री संजय गर्ग, पूर्व जज श्री मन्नूलाल मरकाम, महासचिव श्री अशोक चैधरी, केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री श्री जयराम रमेश व झारखण्ड से प्रो0रामशरण शामिल होंगे। आपसे अपील है कि बड़ी से बड़ी संख्या में इसमें शामिल होकर अपने आदर्श शहीद-ए-आज़म भगत सिंह का जन्मदिवस मनाते हुए अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन के कैमूरक्षेत्र के इस पहले सम्मेलन को ऐतिहासिक रूप से सफल बनाने में हिस्सेदारी निभाएं। दोनों दिन के कार्यक्रम रेणूकूट स्थित गाॅधी मैदान में आयोजित किए जाएंगे। दिनांक 28 सितम्बर 2013 को दिन में हम गाॅधी मैदान से रेणूकूट की सड़कों पर एक विशाल रैली निकालेंगे व शाम को 4 बजे यूनियन के सम्मेलन की शुरूआत की जाएगी। 29 सितम्बर को सम्मेलन दिन भर चलेगा व शाम 5 बजे तक समापन किया जाएगा।      

                                                        

ऐ ख़ाकनशीनों उठ बैठो, वो वक़्त क़रीब आ पहुंचा है

   जब  तख़्त गिराए  जाऐंगे, जब ताज  उछाले  जाऐंगे - ''फै़ज़''


अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन ;।प्न्थ्ॅच्द्ध

कैमूर क्षेत्र महिला-मज़दूर किसान संघर्ष समिति, कैमूर मुक्ति मोर्चा

Raghuram Rajan's rupee gamble may help lure $30 billion


http://economictimes.indiatimes.com/markets/forex/raghuram-rajans-rupee-gamble-may-help-lure-30-billion/articleshow/22351404.cms?intenttarget=no

By Shilpy Sinha, ET Bureau | 6 Sep, 2013, 11.43AM IST

54 comments |Post a Comment


MUMBAI: Reserve Bank of India governor Raghuram Rajan's doubling of borrowing limits for banks and the easier norms to tap non-resident bonds may draw as much as $30 billion in the next three months, providing a much needed breather to fix the currency.Rajan's offer to hedge foreign exchange deposits of the banks at a fixed 3.5% for three years may lure another $10 billion, estimate economists.

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Private banks such as ICICIBSE -1.03 %, Axis and even the State Bank of IndiaBSE -0.83 %may be among the lenders which may use the window opened by the new governor to raise US dollars by bond sales which could fetch as much as $20 billion, said analysts. No bank has declared its intention to use the window so far. Rajan's offer to hedge foreign exchange deposits of the banks at a fixed 3.5% for three years may lure another $10 billion, estimate economists.


"An enhancement in the overseas borrowings would mean additional borrowings possible for the banking sector in foreign currency," said Mohan Shenoi, treasury head, Kotak Mahindra BankBSE 0.18 %, who had estimated that even if a quarter of it is used about $25 billion could flow into the country. Rajan, on Wednesday, moved to shore up the rupee which was among the worst-performing currencies in the world after foreign investors began to pull out funds as tapering of the quantitative easing in the US turned imminent.


*

Banks can now borrow up to 100% of their Tier I capital, from 50% forex-denominated FCNR B of three years and above at a fixed hedge cost of 3.5 %. The rupee gained 1.6% to 60.01. The special swap window for the so-called FCNR (B) deposits, probably to offset the US dollar sales to oil companies under a swap agreement, could lead to substantial flows as it did during previous such moves.


This should add about $10 billion to forex reserves and rein in rein expectations around current levels," said Indranil Sen Gupta, economist, Bank of America Merrill Lynch. "This brings to fruition our standing call that the RBI would need to mobilize forex reserves by launching a NRI deposit scheme in which the rupee risk is borne by it or the government."


During April-June there were net outflows of $101 million compared to an outflow of $696 million in the same period last year. The outstanding FCNR B deposit in the system is $15 billion, almost one-third of the NRE deposit. According to Sengupta, the cost of FCNRB deposit mobilisation will come to 8.5%. RBI has liberalised norms on NRI deposits to get inflows.


In April, it had exempted deposits under the scheme from the requirement of cash reserve ratio and statutory liquidity ratio. If banks lend at 11%, they will likely make the entire 250 basis points spread as FCNRB deposits will not attract CRR or SLR for now. The currency is expected to gain from the inflows. Similar schemes, like the 1998 Resurgent India Bonds and the 2001 India Millennium Deposits were effective in the past. They had raised $5 billion each."


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बेहद शर्मनाक! भारतीय मूल की 'मिस अमेरिका' पर नस्लीय टिप्पणियां

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न्यूयॉर्क। मिस अमेरिका चुने जाने पर नीना को सोशल साइट्स पर नस्लीय टिप्पणियों का भी सामना करना पड़ा। लेकिन, नीना ने अपने खिताब को अमेरिका की अनेकता की जीत बताते हुए इस ओर ध्यान न देने को कहा। ट्विटर पर कुछ शरारती तत्वों ने नीना को अरब से अमेरिका में आकर बसने वाली बताकर उनका अलकायदा तक से रिश्ता जोड़ दिया।

पहली बार भारतीय मूल की सुंदरी बनी मिस अमेरिका

ट्विटर पर एक ने लिखा, मिस अमेरिका, तुम न्यूयॉर्क से बाहर जाओ। तुम्हारी शक्ल आतंकियों जैसी है। दूसरे ने लिखा, मुबारक हो अल-कायदा। हमारी मिस अमेरिका तुममें से ही एक है।

भारत में रिश्तेदारों ने जताई खुशी:-

नीना भले ही अमेरिका में पली-बढ़ी हो, लेकिन उसने भारतीय संस्कारों को कभी नहीं भुलाया। यह कहना है विजयवाड़ा में रहने वाली नीना की मामी शशिबाला का। शशिबाला ने बताया कि नीना के पिता दावुलुरी धन कोटेश्वर चौधरी 1970 के करीब यहां से अमेरिका जाकर बस गए थे।


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