Friday, July 5, 2013

हमारी आत्मा दिवंगत है और मस्तिष्क मृत्यु के बावजूद अलौकिक इहलीला जारी!

हमारी आत्मा दिवंगत है और मस्तिष्क मृत्यु के बावजूद अलौकिक इहलीला जारी!

पलाश विश्वास

मारी आत्मा दिवंगत है और हम मस्तिष्क मृत्यु के बावजूद अलौकिक इहलीला जारी रखे हुए हैं। दुनियाभर में क्रांतियां हो रही हैं। निरंकुश तानाशाही, धर्मराष्ट्र और सैनिक शासन के खिलाफ कामयाब जनविद्रोह एकध्रूवीय विश्व व्यवस्था के मुकाबले सबसे बड़ा सच है और इससे बड़ा सच यह है कि हम धर्मांध भारतवासी अपने लोक गणराज्य को निरंकुश सैन्य कारपोरेट तानाशाही में तब्दील होते हुए एकदम तटस्थ भाव से आध्यात्मिक समाधिभाव से देख रहे हैं। सूचना महाविस्फोट का कमाल डिजिटल टीवीस्क्रीन है , जिसपर सेटबाक्स के जरिये पसंदीदा चैनल देखने की हमें स्वतंत्रता बतायी जाती है। लेकिन अलग अलग चैनलों को पसंद करने का कोई विकल्प है ही नहीं। आपको मनोरंजन पैकेज में से किसी एक को अपनी  क्रयशक्तिसापेक्ष  औकात को चुनना है। जिसके फलस्वरुप मनोरंजन पैकेज के मध्य प्रासंगिक व जरूरी सामाचार चैनलों के लिए आपको इतना ज्यादा शुल्क अदा करना है कि सीरियल और फिल्मों के साथ मशरूमी पेइड चैनल का विकल्प चुनने के लिए निनानब्वे फीसद जनता बाध्य है। सिरे से सूचना के महा राजमार्ग से हाशिये परडाल दिये गये आम लोग। राष्ट्रीय अखबार भी अब क्षेत्रीय हो गये हैं। जिलों और प्रांतों की बरों से लबालब। जां न राष्ट्र है और न विमर्श। सोशल मीडिया पर धार्मिक माहौल है या फिर उन्मादी जुनून। संवाद के लिए कहीं कोई स्पेस है ही नहीं।

दुनियाभर में निनानब्वे फीसद की जो लड़ाई सत्तावर्ग के खिलाफ चल रही है, उसकी क्षीण प्रतिध्वनि भी भारतीय समाज में नहीं हुई। हमारे यहां जो पचासी फीसद की लड़ाई लड़ने का जिहाद चला रहे हैं, संवाद और लोकतंत्र के बजाय उनकी पूंजी घृणा अभियान है। दूसरी तरफ, जो सशस्त्र संग्राम के जरिये व्यवस्था परिवर्तन की परियोजना बताते हुए जहां तहां अपनों पर ही घात लगाकर हमला कर रहे हैं, इस लोक गणराज्य का अवसान ही उनका अंतिम लक्ष्य है। सामाजिक यथार्थ के कठोरतम परिप्रेक्ष्य में देश और समाज नेतृत्वहीन है। कारपोरेट राजनीति और अराजनीति के अवतारों की शरण में ही हम मोक्ष खोजते हैं।

मानवनिर्मित आपदाओं के गर्भ में विलीन होती विपन्न जनसंख्या को फिरभी हवाई दौरों, कारोबारी राहत व बचाव अभियान और आपदाओं की श्रृंखला रचने वालों के हाथों अपना जीवन समर्पण करना पुरुषार्थ लगाता है।

हमारे लिए जीवन और यथार्थ धार्मिक कर्मकांड के सिवाय कुछ नहीं है।कुछ भी तो नहीं।

हम एक बहिस्कार अस्पृश्यता नस्ली भेदभाव आधारित बंद समाज के गुलाम नागरिक हैं। मिसाइली पारमाणविक महाशक्ति बन जाने के बावजूद हम अंध तमस में जीने वाले अंधकार प्रजातियां हैं, जो सिर्फ आपस में लड़कर ही लहूलुहान जीवन यापन करने को अभ्यस्त हैं और यही हमारा जीवन दर्शन है।

हम हस्तक्षेप और निषेध का व्यवहार करने वाले लोग हैं।

हम अस्पृश्यताजीवी है।

इसलिए किसी स्वतंत्र लोक गणराज्य में नागरिकों की निजता, उनकी संप्रभुता की अवधारणा से हमारा तादात्म्य बनता ही नहीं।

हमारी पुतलियां, हमारी रेखाएं कुंडलियों और ग्रहदशा के अनंत आयाम के पार कारपोरेट आपराधिक प्रयोग की वस्तु बन जायें, यह अशनि संकेत हमें उत्कंठित नहीं करती,  जितना कि माओवादी खतरे से निपटने की चुनौती, धर्मश्थल आंदोलन, समुदायों के सफाये की महिम, प्रतिरक्षा तैयारियां!

इससे हमारी हिंसक नरसंहार की संस्कृति परिपूर्ण होती है और हम चरितार्थ होते हैं।

हमारे लिए परिवर्तन अमोघ निरंतर प्रतिशोध है, निरंकुश हिंसा और अंध अराजकता है जिसमें हत्या और बलात्कार की पूरी छूट हो और हो उन्मुक्त रक्त उत्सव।

हमारे लिए धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र , लोकगणराज्य और संविधान थोंपे हुए मूल्य हैं।

हम अपने अपने अवतारों के अंध भक्त हैं और उनकी पूजा में नरबलि के कर्मकांड को पुण्यकर्म मानते हैं।

हम किसी समुदाय, जाति या वर्ग विशेष के सफाये में अपनी आजादी खोजते हैं , गुलामी से मुक्ति मानते हैं और इसी में सारी समस्याओं का समाधान खोजते हैं। हम इसके लिए अपना धन, संसाधन पुरखों, महापुरुषों और महादेवियों के नाम पर समर्पित करते हैं। न अपनी आत्मा को टटोलते हैं और न विवेक की सुनते हैं।

नागरिकता का मूल्यबोध हमारे लिए समता, न्याय,स्वतंत्रता, भाईचारा कतई नहीं है।

हर मानव हमारे लिए वध्य है और पूरा देश वधस्थल।

इसलिए भाड़ में जाये लोग गणराज्य!

भाड़ में जाये लोकतंत्रा और संविधान!

हमारे लिए क्या तो मानव अधिकार और क्या तो नागरिक अधिकार!

हम अंधकार युग के रोबोट, रिमोट नियंत्रित जैविकी अजूबा हैं, स्वतंत्र नागरिक तो कतई नहीं!

ऐसे में इस देश में पूरे एक दशक से जारी नागरिकता पर निर्मम कारपोरेट आक्रमण के संदर्भ में कोई जनसुनवाई या बहस नहीं हो सकी है। बंगाल की बागी मुख्यमंत्री ने नागरिकों की निजता के सवाल पर केंद्र सरकार की ओर से जारी खुफिया निगरानी पर फेसबुकिया मंतव्य जरुर किया है।

सैन्यकृत राष्ट्र तकनीकी विकास में न सिर्फ कृषि, न सिर्फ स्वदेशी काम धंधे, बहुसंख्यक जनसंख्या के रोजगार की हत्या का चाकचौबंद इतजाम किया है , बल्कि आंतरिक सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा के धर्मोन्मादी घटाटोप में अस्पश्य भूगोल और बहिस्कृत बहुसंख्यक जनसमुदायों को जल जंगल जमीन आजीविका  और नागरिकता से बेदखल करने का अश्वमेध अभियान चलाये हुए है।

संविधान की हत्या हो गयी है। लोकतांत्रिक संस्थाओं को कंबंध में तब्दील कर दिया गया है। खुल बाजार का विस्तार,अबाध पूंजी प्रवाह, कारपोरेट बिल्डर प्रोमोटर राज और कालाधन की निरंकुश स्वतंत्रताएं, दमन और जनसंहार के लिए राष्ट्र का सैन्यीकरण, दमनवाहिनी गेस्टापो को अखंड रक्षाकवच ही भारत की वर्तमान छवियां हैं।

मेरी लंबी कविता `भारत की छवियां' में मैंने ये दृश्य प्रस्तुत करने की कोशिश की है और नागरिकता व विपन्न मनुष्यता की व्यथा कथा को अभिव्यक्त करने की असहाय चेष्टा भर की है।

क्योंकि एक दशक से लिखकर, सार्वजनिक मंचों से चिल्ला चिल्ला कर, यू ट्यूब जैसे माध्यम का प्रयोग करके , सोशल नेटवर्क पर लगातार उपस्थित होकर हम और हमारे साथी लोगों को यह अहसास दिलाने में सिरे से नाकाम रहे कि बायोमैट्रिक नागरिकता के गर्भ में ही भारत लोक गणराज्य का अवसान है।

न सिर्फ नागरिक और मानव अधिकार निलंबित या स्थगित हैं, न सिर्फ नागरिक व मानव अधिकार का हिंसक उल्लंघन हो रहा है, न सिर्फ अनुसूचित और अल्पसंख्यक विपन्न हैं, बल्कि अब भरतीय नागरिकों से अपराधियों जैसा सलूक कर रहा है राष्ट्र। मोबाइल हाल के दिनों में सूचना क्रांति की धारा में हमारेजीवन की अनिवार्यताओं में शामिल हुआ है। सर छुपाने की जगह हो  या नहीं, हर हाथ में मोबाइल है। रोजगार या आजीविका हो या नहीं, हर हाथ में मोबाइल है। भोजन मिलता हो या नहीं मोबाइल चाहिये। वेतन,मजदूरी,पीएफ, शिक्षा, रोजगार, बैंकिंग, गैस सिलिंडर, रेलवे जैसी जरुरी नागरिक सेवाओं के बाद अब मोबाइल क्रांति के साथ भी गैरकानूनी कारपोरेट बायोमेट्रिक आधार योजना को जोड़ा जा रहा है।

प्रिज्म तो अमेरिकी आयोजन है, हम और हमारी मीडिया को अमेरिकी साम्राज्यवाद के खिलाफ सुरक्षित आवाज उठाने में कोई दिक्कत नहीं होती, लेकिन जो निरंकुश आंतरिक धर्मोन्मादी साम्राज्यवाद आंतरिक सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा के बहाने लादा जा रहा है, उसके खिलाफ बोलने में हमारी फट जाती है क्योंकि हम खुले बाजार की इस व्यवस्था में अपने अपने वजूद और अवस्थान को बनाये रखने की कवायद में ही रोज रोज मर मरकर जी रहे हैं!

जल्द ही आपको सिम कार्ड लेने के लिए फिंगर प्रिंट देना पड़ सकता है। गृह मंत्रालय ने डिपार्टमेंट ऑफ टेलिकॉम (डॉट) से ऐसे ऑप्शन पर सोचने के लिए कहा है कि सर्विस प्रवाइडर मोबाइल नंबर ऐक्टिवेट करने से पहले आधार की तर्ज पर फिंगरप्रिंट या कोई और बायॉमेट्रिक डेटा लें। मोबाइल कनेक्शन देने वाली कंपनियां जल्द ही सिमकार्ड की खरीद-बिक्री के लिए नियम को और सख्त कर सकती हैं। कनेक्शन लेने के लिए उपभोक्ता को आधार कार्ड नंबर के अलावा अपनी बायोमीट्रिक पहचान भी बतानी होगी। ऐसा आपराधिक एवं उग्रवादी घटनाओं में हुई वृद्धि को देखते हुए किया जा रहा है।विभाग आधार को जरूरी बनाने पर विचार कर रहा है ताकि फॉर्म में लगे फोटोग्राफ और आधार कार्ड के डाटा से मिलान किया जा सके। इसके बाद पहचान के लिए बायोमीट्रिक मशीन की व्यवस्था होने के बाद आवेदन के साथ आवेदक की फिंगर प्रिंट, हथेली सहित अन्य की छाप ली जाएगी। इसके अलावा सेंट्रल डाटा बेस बनेगा जिससे केन्द्रीय सुरक्षा एजेंसियां जरूरत पड़ने पर सूचनाएं जुटा पाएंगी।

डॉट को लिखे नोट में मंत्रालय ने यह भी सुझाव दिया है कि इसका एक सेंट्रल डेटाबेस तैयार करे और राष्ट्रीय सुरक्षा के नजरिए से इसे नैशनल इंटेलिजेंस ग्रिड (नैटग्रिड) से जोड़े। एक अधिकारी ने बताया कि डॉट इस मामले में टेलिकॉम सर्विस प्रवाइडर्स समेत सभी संबंधित पक्षों से बात करेगा, क्योंकि यह देखा गया है कि ज्यादा से ज्यादा सिम कार्ड बेचने की होड़ में फिजिकल वेरिफिकेशन की मौजूदा व्यवस्था ठीक तरह से नहीं चल रही है। फिलहाल किसी भी व्यक्ति के पहचान पत्र वाला सिमकार्ड का कोई और उपयोग करता था। किसी भी प्रकार की घटना के बाद पुलिस जब पड़ताल करती थी तब पता चलता था कि सिम लेनेवाला दूसरा व्यक्ति है। उसे मालूम भी नहीं होता कि उसके नाम के सिम का प्रयोग हो रहा है। इसके बाद पुलिस की जांच थम जाती थी। गत वर्ष बीएसएनएल सहित अन्य ने कंप्यूटरीकृत जांच प्रणाली प्रारंभ की। अब उसमें और सुधार किया जा रहा है।

26/11 के मुंबई हमले में पाया गया था कि लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर लिए गए भारतीय सिम कार्ड्स का इस्तेमाल किया था। इसके बाद सिम कार्ड देने के सिस्टम को कड़ा बनाया गया था, लेकिन अभी भी सिम कार्ड का गलत इस्तेमाल रुक नहीं रहा है। डॉट ने पिछले साल यह व्यवस्था लागू की थी कि मोबाइल सर्विस प्रवाइडर सिम कार्ड देने से पहले फिजिकल वेरिफिकेशन करेंगे। लेकिन पूरे देश से राज्यों की पुलिस ने यह शिकायत की कि रीटेलर्स इस व्यवस्था को सही ढंग से लागू नहीं कर रहे हैं क्योंकि सर्विस प्रवाइडर की तरफ से उन पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती।

हाल ही में इस मामले को दिल्ली पुलिस के कमिश्नर नीरज कुमार ने भी उठाया था। उन्होंने 15 मई को गृह मंत्रालय से सिम कार्ड जारी करने से पहले बायॉमेट्रिक डिटेल्स लेने का सिस्टम लागू करने की मांग की थी। नीरज कुमार ने भी यह बात कही थी कि तगड़े कॉम्पिटिशन की वजह से मोबाइल सर्विस प्रवाइडर फिजिकल वेरिफिकेशन की अनदेखी कर रहे हैं। उन्होंने कहा था कि डिस्ट्रिब्यूटर अपराधियों को भारी संख्या में सिम कार्ड बेच रहे हैं, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है।उन्होंने हाल ही के एक मामले का जिक्र किया था, जिसमें पुलिस ने एक अनऑथराइज्ड रीटेलर को पकड़ा था। रीटेलर ने फर्जी कागजातों के आधार पर 490 सिम कार्ड बेचे थे। कमिश्नर ने यह भी सुझाव दिया कि डॉट और ट्राई (टेलिकॉम रेग्युलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया) को नियमों के उल्लंघन पर भारी जुर्माना लगाना चाहिए और कड़ा ऐक्शन लेना चाहिए।

इस वक्त प्री-ऐक्टिवेटेड सिम कार्ड पर 50 हजार रुपए का जुर्माना है और मोबाइल सर्विस तुरंत डिस्कनेक्ट कर दिए जाने का प्रावधान है।

No comments:

Post a Comment